गुरुवार, 9 सितंबर 2021

कविता , रोज ढलता है सूरज और मेरी एक प्याली चाय

      नमस्कार , लगभग महीने भर पहले मैने ये कविता लिखी थी जिसे मैं किसी व्यस्तत्ता के कारण आपसे साझा नही कर पाया था आज कर रहा हूं मुझे यकीन है कि आपको यह कविता पसंद आएगी 

रोज ढलता है सूरज और मेरी एक प्याली चाय 


विश्वास ही नहीं होता मुझको 

आप को भी नही होता ना 

किसी को भी नहीं होता होगा 

आखिर किसी को हो भी कैसे सकता है 


कि कोई सूरज नाम का चीज है 

जो रोज सुबह जन्म ले लेता है 

और कुछ घंटे जीवित रहता है 

फिर मृत्यु को हो जाता है 


और फिर अगली सुबह जीवन पाता है 

यानी ना तो ये पुर्णत: अमर है 

और ना ही नश्वर 

इसे किसने इस काल चक्र में फंसाया है 

किसी मनुष्य ने यक्ष ने गंधर्व ने या के ईश्वर 

       मेरी ये कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


कविता , एक महल और मैं

      नमस्कार , लगभग हफ्ता भर पहले मैने ये कविता लिखी थी जिसे मैं किसी व्यस्तत्ता के कारण आपसे साझा नही कर पाया था आज कर रहा हूं मुझे यकीन है कि आपको यह कविता पसंद आएगी 

एक महल और मैं 


एक महल की छायाचित्र देखकर 

स्वयं को उस महल में कल्पना करने लगा 

वो सोने के आभूषण वो नौकर चाकर 

वो महंगें वस्त्र वो आलीशान विस्तर 

बहुत सी लंबी लंबी गाड़ीयां 

वो हवाई जहाजों पर सवारीयां 

कितने होंगे स्वादिष्ट पकवान 

तभी एकाएक वापस लौट आया ध्यान 

आज घर में सब्जी क्या बनी है 

      मेरी ये कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


कविता , एक कच्ची मिट्टी का घडा

      नमस्कार , लगभग महीने भर पहले मैने ये कविता लिखी थी जिसे मैं किसी व्यस्तत्ता के कारण आपसे साझा नही कर पाया था आज कर रहा हूं मुझे यकीन है कि आपको यह कविता पसंद आएगी 

एक कच्ची मिट्टी का घडा 


एक कच्ची मिट्टी का घडा 

मुझसे ये कहते हुए रो पड़ा 


कि मैं टूट जाउंगा 

मुझे विश्वास मैं टुट जाउंगा 

उस पक्की मिट्टी के घडे से 

बराबर करते हुए 

उससे खुद को बेहतर 

साबित करने का युद्ध लडते हुए 


उसकी आंखों से 

अश्रु धारा बहने लगी 

और वह अधीर होते हुए 

सीसक कर बोला 

मैं कहां ये युद्ध लड़ना चाहता हूं 

वास्तव में यह युद्ध ही नही है 

यह तो मेरा अपना अस्तित्व 

बचाने का प्रयास है 

मुझे विश्वास है कि मैं नही टुटुंगा 


क्योंकि अगर मैं टुट गया 

तो खत्म हो जाएगा अस्तित्व 

कच्ची मिट्टी के घडों का 

लोग यह कहकर नही खरीदेंगे की 

कच्चे घडे तो कमजोर होते हैं 

ये बहुत जल्दी टुट जाते हैं 

और फिर कुम्हार हमें 

बनाएगा ही नहीं यह कहकर 

ये कच्चे घडे तो बिकते ही नहीं 

      मेरी ये कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


कविता , पंजाब की तो बात ही निराली है

      नमस्कार , लगभग महीने भर पहले मैने ये कविता लिखी थी जिसे मैं किसी व्यस्तत्ता के कारण आपसे साझा नही कर पाया था आज कर रहा हूं मुझे यकीन है कि आपको यह कविता पसंद आएगी 

पंजाब की तो बात ही निराली है 


पांच नदिया बहती है जिसमें 

वो पावन भूमि जैसे एक थाली है 

पंजाब की तो बात ही निराली है 


अमृतसर का अमृत सर है 

गुरुग्रंथ का यह पावन घर है 

गुरुवाणी का प्रभाव सब पर है 

भाषा तो मानो शहद की प्याली है 

पंजाब की तो बात ही निराली है 


भांगडा़ , गिद्दा सब की शान हैं 

दसों गुरुओं पर जन-जन को अभिमान है 

किसानों की आन खेत खलिहान हैं 

लोहड़ी , होली , दशहरा और दिवाली है 

पंजाब की तो बात ही निराली है 

       मेरी ये कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


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