रविवार, 14 मार्च 2021

कविता , मेरे पथिक सून

       नमस्कार 🙏हिन्दी काव्य कोश पर चल रहे एक साप्ताहिक काव्य प्रतियोगिता में विषय पथिक पर विधा कविता में दिनांक 12/03/2021 को मैने मेरी एक रचना भेजी थी रचना तो विजयी नही हुई पर मैने ये सोचा के क्यों न आपके साथ भी इसे साझा किया जाए तो पेश कर रहा हूँ पढ़ कर विचार जरूर बताइएगा |

मेरे पथिक सून 


ओ पथिक मेरे पथिक सून 

सांझ का ये रास्ता है 

रात काली और घनी है 

मेरा तुझको वास्ता है 


कल सवेरा हो तो जाना 

लौट कर फिर तुम न आना 

आज का खटका है मुझको 

कह रहा हूँ तभी तो तुझको 

झूठ का सच कह रहा हूँ 

सच को झूठा कह रहा हूँ 

इसमे मेरा क्या भला है 


ओ पथिक मेरे पथिक सून 

सांझ का ये रास्ता है 


आगे पथ से अनजान है तू 

इस शहर में मेहमान है तू 

चार पहर की रात है ये 

इतनी खामोशी आज है ये 

हो न जाए कुछ अनहोनी 

जीत तो है सच की होनी 

उस पे मेरी आस्था है 


ओ पथिक मेरे पथिक सून 

सांझ का ये रास्ता है 

     मेरी ये कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |

गुरुवार, 4 मार्च 2021

ग़ज़ल, मैने उसका मेरे दिल में घर होने दिया

       नमस्कार , लगभग हफ्ते भर पहले मैने एक छोटी सी नयी ग़ज़ल लिखी है जिसे आपसे साझा कर रहा हूँ आशा है आपका प्यार मिलेगा |

मैने उसका मेरे दिल में घर होने दिया 

मैने जहर को असर होने होने दिया 


मै भी चाहता तो अधुरी छोड़ सकता था 

मैने कहानी को मुख्तसर होने दिया 


रात भर मर मे भी मर सकता था रिश्ता 

मगर मैने ही सहर होने दिया 


दर्द तो इतना था के मत ही पूछो तनहा 

मगर मैने उसे बेअसर होने दिया 

      मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


ग़ज़ल, , कौन कहता है के मुझे गम है

       नमस्कार , तकरीबन एक वर्ष पहले मैने ये ग़ज़ल लिखी थी और लिखकर मैने कॉपी अलमारी में रख दी थी अब जब वक्त मिला तो दिल किया के कुछ पुराने लिखे भी दोस्तों के साथ साझा किए जाए तो हाजिर है ये ग़ज़ल |

कौन कहता है के मुझे गम है 

ये मेरा बहुत पुराना जख्म है 


क्या शिकायत करें इस जिस्म की हम खुदा से 

जो मिला है वही कौन सा कम है 


अभी कुछ और उलझेगा अभी कुछ और सुलझेगा 

ये उनके बालों में नया नया ख़म है 


पहले भी मेरी मोहब्बत नही समझता था आज भी नहीं 

मेरा सनम अब भी वही सनम है 


मैं जो कुछ भी तेरी तारीफ़ में लिख पाता हूं 

खुदा के नमाजें फन का करम है 

      मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


मंगलवार, 23 फ़रवरी 2021

कविता , चल उजाला छीन लाते हैं

      नमस्कार , मैने एक नयी कविता बीते हुए परसों में लिखी है जिसे मै आपके समक्ष रखना चाह रहा था | ये कविता आपको कैसी लगी मुझे जरुर बताइएगा |

चल उजाला छीन लाते है

फिर साम को उससे दीया जलाएंगे


नाव लेकर चलते है मजधार में

उम्मीद बांध लेते हैं पतवार में

डुब भी गए तो क्या होगा हमारा

खबर तक नही छपेगी अखबार में

एक दिन सब बदल जाएगा दोस्त

ये जूगनु यही यकीन लाते है


चल उजाला छीन लाते है

फिर साम को उससे दीया जलाएंगे


पेट खाली है तो समझो सब बंजर है

भरा है पेट तो हसीन हर मंजर है

इमारतों की रोशनी आंख में चुभती है

मेरे बल्ब में कई चांद से मंजर हैं

एसी की ठंडक है मेरे टेबल फैन की हवा में

इस बार धनतेरस में सिलाई मशीन लाते है


चल उजाला छीन लाते है

फिर साम को उससे दीया जलाएंगे 

      मेरी ये कविता अगर अपको पसंद आए है तो आप मेरे ब्लॉग को फॉलो करें और अब आप अपनी राय बीना अपना जीमेल या जीप्लप अकाउंट उपयोग किए भी बेनामी के रूप में कमेंट्र कर सकते हैं | आप मेरे ब्लॉग को ईमेल के द्वारा भी फॉलो कर सकते हैं |

      इस कविता को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |

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