सोमवार, 8 फ़रवरी 2021

ग़ज़ल , मैं यू ही उसको बंजर नही कहता

      नमस्कार , मैने एक नयी ग़ज़ल लिखी है जिसे आपके साथ साझा करना चाहूँगा और ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचारों से अवगत अवश्य कराइएगा |

मैं यू ही उसको बंजर नही कहता

हर कहानी खुद मंजर नही कहता


जब बोलो अल्फाज चुनकर बोलो

घाव कितना देगा खंजर नही कहता


आंशुओं को नापें तो भला नापें कैसे

कितना गहरा है समंदर नही कहता


मोहब्बत लिखते लिखते होगया तनहा 

अब हार गया है सिकंदर नही कहता

     मेरी ये ग़ज़ल अगर अपको पसंद आए है तो आप मेरे ब्लॉग को फॉलो करें और अब आप अपनी राय बीना अपना जीमेल या जीप्लप अकाउंट उपयोग किए भी बेनामी के रूप में कमेंट्र कर सकते हैं | आप मेरे ब्लॉग को ईमेल के द्वारा भी फॉलो कर सकते हैं |

      इस ग़ज़ल को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |

गुरुवार, 28 जनवरी 2021

कविता , कोरोना' तुझे हाय लगेगी मेरी

       नमस्कार , कोरोना महामारी के इस काल में हम सब ने कई अनुभव पाए जैसे कोरोना बीमारी का दर्द , कही हो न जाए इसका डर , अपनों को खोने का गम , घरों में कैद रहने की घुटन आदी | इन्ही एहसासों को मैने एक कविता में लिखने की कोशिश की है और मुझे यह आपको बताते हुए बहुत हर्ष हो रहा है की मेरी इस कविता को साहित्यपीडिया ने अपने साझा कविता संग्रह 'कोरोना' में प्रकाशित किया है | मेरी यह कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार अवश्य बताइएगा |

'कोरोना' तुझे हाय लगेगी मेरी


मैं कई महीनों से कैद हूँ घर में

बस तेरे डर से

अनलाँक नही कर पा रहा हूँ खुद को

बस तेरे डर से

दूर रहना बस तू सदा ही कोरोने

मेरे प्यारे घर से

नही तो सुनले वर्ना

‘कोरोना’ तुझे हाय लगेगी मेरी


घमंड छोड़कर सच को देख

तूने किए हैं पाप अनेक

अपने अंजाम को पाएगा तू

एक दिन मिट्टी में मिल जाएगा तू

अब जो एक भी जीवन छीना तूने

तो कान खोलकर सुनले वर्ना

कोरोना’ तुझे हाय लगेगी मेरी


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रविवार, 24 जनवरी 2021

कविता , तांडव शब्द को बदनाम मत करो

      नमस्कार , तांडव विवाद तो आपको पता ही होगा इसी को ध्यान में रखते हुए मैने एक कविता लिखी है जिसे मै आपके सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हूँ कविता पर अपने विचार जरुर बताइएगा |

तांडव शब्द को बदनाम मत करो


तांडव शब्द को बदनाम मत करो

अपनी ओछी विचारों वाली फिल्मों से

तांडव वो नृत्य है जिससे सृष्टि का सृजन हुआ

तांडव वो नृत्य है जिससे काम भस्म हुआ

तांडव सत्य का नाद है

तांडव पाप का विनाश है

तांडव है दहकती हुई आग की ज्वाला

तांडव है नीलकंठ में धारित हाला

मन का करुण विलाप तांडव है

संगीत का प्रथम आलाप तांडव है

तांडव केवल शिव नही है शक्ति भी है

तांडव केवल भय नही है भक्ति भी है

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शनिवार, 23 जनवरी 2021

कविता , नेता हो तो सुभाष जैसा हो

        नमस्कार , भारत की आजादी के प्रथम प्रमुख नायको मे से एक , राष्ट्रप्रेम और देशभक्ति के प्रतिक पुरुष ,  महान नेता एवं क्रांतिकारी नेताजी सुभाष चंद बोस को उनकी जन्मजयंती पर मेरा नतमस्तक नमन वंदन 🇮🇳🇮🇳🙏

        एक देश एवं इस महान देश के नागरीक होने के नाते हम नेताजी का जितना भी गुणगान करें वह कम होगा पर किर भी मैं अपनी छोटी सी एक कविता नेताजी के श्री चरणों में समर्पित करता हूँ


नेता हो तो सुभाष जैसा हो

वर्ना ना हो


कर्तव्यनिष्ठ राष्ट्रप्रेमी देशभक्त

स्वयं के स्वार्थ को परे रख

सत्य के पथ पर होकर अटल

तीव्र वेग से चलने वाले

पुण्य प्रकाश के जैसा हो


नेता हो तो सुभाष जैसा हो

वर्ना ना हो


जिसकी आवाज सुनकर के

देश के दुश्मनों के पैर कांपे

जो वचनबद्ध होकर के कर्तव्य 

निभाने को आठो पहर जागे

जिसका व्यक्तित्व आकाश जैसा हो


नेता हो तो सुभाष जैसा हो

वर्ना ना हो

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