नमस्कार , मैने एक नयी ग़ज़ल लिखी है जिसे आपके साथ साझा करना चाहूँगा और ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचारों से अवगत अवश्य कराइएगा |
मैं यू ही उसको बंजर नही कहता
हर कहानी खुद मंजर नही कहता
जब बोलो अल्फाज चुनकर बोलो
घाव कितना देगा खंजर नही कहता
आंशुओं को नापें तो भला नापें कैसे
कितना गहरा है समंदर नही कहता
मोहब्बत लिखते लिखते होगया तनहा
अब हार गया है सिकंदर नही कहता
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इस ग़ज़ल को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |