मंगलवार, 22 सितंबर 2020

ग़ज़ल , महामारी फैली है

        नमस्कार , जैसा कि हम सब जानते हैं कि हम एक लंबे लाँकडाउन के बाद अनलाँक 3 में हैं और इसी के साथ देश में ट्रेने और बसे चलने लगी है बाजार और स्कुल खोले जा चुके है मगर इसका मतलब ये नही है कि कोविड 19 महामारी खत्म हो गयी है बल्की यह तो भारत में दिन पर दिन फैल रही है | आज भारत में कोविड 19 महामारी के 55 लाख से ज्यादा केस मिल चुके हैं और लगभग 88 हजार से ज्यादा मौतें हो चुकी है |

       गौर करने लायक बात यह है की इस तरह कि गंभीर परिस्थितियों में भी भारत सरकार NEET और JEEmains के इग्जाम करा रही है और अब UPSC prelims 2020 के इग्जाम भी 4 अक्टूबर को आयोजित होने जा रहे हैं और इन्हें टालने की सरकार कि कोई मंशा नही दिख रही है  | यहां सवाल यह है कि जिन परिक्षाओं में देश भर के करिब चालिस से पचास लाख लोग हिस्सा लेते हैं ऐसे इग्जामों को कराकर सरकार इतने लोगों के स्वास्थ को खतरे में क्यों डाल रही है क्या देश की इकोनाँमी को रफ्तार देने के लिए इतने लोगों के स्वास्थ को खतरे में डालना सही है | मैं निजी तौर पर सरकार के इस फैसले की कडे़ शब्दो में घोर निंदा करता हुँ | अपने इन्ही विचारों को मैने अपने ग़ज़ल में जगह दी है मुझे उम्मीद है की आपको मेरी यह ग़ज़ल प्रसंद आएगी |

ये सब को पता है कि बीमारी फैली है

फिर भी बाजार में मारामारी फैली है


ये कैसा निजाम है परिक्षाएं करा रहा है

और पुरे मुल्क में महामारी फैली है


कहते हैं घर घर चलकर रोजगार आएगा

गांव में यही खबर सरकारी फैली है


कल मुशाफिरों कि टोली ठहरी होगी यहां

देखों पेड़ के निचे रोटी तरकारी फैली है


जितने भी किए जांए इंतजाम कम हैं

देश के युनाओं में इतनी बेकारी फैली है


कौन देगा इन मासुम से हाथों में किताब

मेरे समाज के बच्चों में बेगारी फैली है


तनहा खुलकर रखता है राय अपनी

हर गली मोहल्ले में ग़ज़ल हमारी फैली है

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      इस ग़ज़ल को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |

ग़ज़ल , खबर में है

        नमस्कार , आज मैने एक नयी ग़ज़ल लिखी है जिसे मैं आपके दयार में रख रहा हुँ | कहना ये चाहुंगा के अगर आप हालिया खबरों से अवगत होंगे तो आपको इस ग़ज़ल का ज्यादा आनंद आएगा |

धुएँ में बीताई गई रात खबर में है

चर्चा शहर में और बात खबर में है


सत्तापक्ष का नेता गाली गलौच करता है

नेताजी की औकात खबर में है


ये आरक्षण आरक्षण का खेल है

इंसानों कि हर एक जात खबर में है


साजिश का मारा जो सितारा मर गया

अब उसके सारे हालात खबर में है


संदेह के घेरे में हैं बडे़ पर्दें के सितारे

नशे से हुई उनकी मुलाकात खबर में है


प्रेमी संग फरार हुई बेटी के मां-बाप हैं

तनहा उनके जज्बात खबर में है

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रविवार, 20 सितंबर 2020

ग़ज़ल , तू का रिश्ता है

       नमस्कार , आज मैने एक नयी ग़ज़ल लिखी है जिसे मैं आपके साथ हिम्मत जुटाकर साझा कर रहा हुँ मुझे यकिन है कि मेरी ये ग़ज़ल आपको अच्छी लगेगी |

सहर और साम का जुस्तजू का रिश्ता है

हवाओं का फूलों से खुशबू का रिश्ता है


उसकी शादी के बाद से ये आदबो आदाब

वर्ना उससे मेरा आप का नही तू का रिश्ता है


न जाने जमाने भर को नागवार गुजरता है

परिन्दे का परिन्दी से गुफ्तगू का रिश्ता है


उसने ऐसे इंसानियत का रिश्ता निभाया है 

कहते है बीमार से उसका लहू का रिश्ता है


रोज घर में रामायण महाभारत साथ होती है

प्यार और तकरार का सास-बहू का रिश्ता है


कौन किसे जीजा कहे कौन किसे साला

दोनों का एक दुसरे से हूबहू का रिश्ता है


गर मोहब्बत का जलवा हो तो तनहा हो

आदत का अदाओं से आरजू का रिश्ता है

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ग़ज़ल , बेरोजगार हुं साहब

       नमस्कार , आज ही मैने ये ग़ज़ल लिखी है जिसे मैं आपके सम्मुख रख रहा हुँ आशा करता हुँ की आपको मेरी यह ग़ज़ल प्रसंद आएगी | मैं इमानदार होकर कहुँं तो यह ग़ज़ल मेरे स्वयं के दिल के जज्वात कहती है क्योंकि कम्प्युटर साइंस एण्ड इंजिनियंरिंग से बैचलर ऑफ इंजिनियंरिंग कि डिग्री 2019 में पुरी कर लेने के बाद भी अभी तक मुझे कोई नौकरी या रोजगार नही मिल पाया है तो मैं उन लोगों की मनोदशा बहुत बेहतर करीके से समझ सकता हुँ जो परिवार वाले हैं बहरहाल आप मेरी इस ग़जल का आनंद लिजिए और कैसी रही जरुर बताइएगा |

समाज के नजरों में बेकार हुँ साहब

बाजार में बिकने को तैयार हुँ साहब


नाकारा निकम्मा दुसरे नाम होगए

मैं पढा़ लिखा बेराजगार हुँ साहब


वोट दे देने के बाद कुछ नही मिलेगा

मैं इतना तो समझदार हुँ साहब


शिर्फ मेरे भुखे मरने का सवाल नही

अपने परिवार का आधार हुँ साहब


कौन चाहता है लम्हे गिनकर दिन बिताना

मगर मैं क्या करुं लाचार हुँ साहब


तनहा लहू पसीना बनाकर बहा देंगें

जीतोड़ मेहनत के लिए बेकरार हुँ साहब

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