बुधवार, 5 अगस्त 2020

ग़ज़ल , मेरे लिए खुदा हैं राम मेरे

     नमस्कार , आपको एवं सम्पुर्ण भारतवर्ष तथा दुनियाभर के सम्पुर्ण रामभक्तों को श्रीराम मंदिर भुमि पुजन की हार्दीक शुभकामनाएं | आज मैं इस पावन दिन को साकार बनाने में जितने भी लोगों ने संघर्ष किया है उन सभी लोगों के प्रति अपना सम्मान व्यक्त करता हुं | साथ ही हमारे भारतवर्ष में प्रचलित प्रभु श्रीराम के लिए एक संबोधन कहें या शब्द को लेकर मुझे आपत्ति है,वह शब्द है 'इमाम-ए-हिंद' |

     'इमाम-ए-हिंद' शब्द के बारे में कहा जाता है की सबसे पहले इसका उपयोग शायर इकबाल ने किया था तभी से यह जनमानस में गाहे ब गाहे इस्तेमाल होता आ रहा है | इस्लाम मजहब में इमाम कौन होता है तथा इमाम का दर्जा क्या होता है आप जानते हैं यदि ना जानते हो तो आप Google पर सर्च करके जान सकते हैं | हमार प्रभु श्रीराम हमारे लिए या यू कहुं तो हिन्दूओ के लिए भगवान हैं और हमारे भगवान प्रभु श्रीराम को एक इंसान के बराबर कहे जाने पर राम भक्त होने के नाते मुझे घोर आपत्ति है | यही वजह है कि मुझे इस लफ्ज 'इमाम-ए-हिंद' से आपत्ति है क्योंकि मेरे लिए खुदा हैं राम मेरे | 

    इमाम-ए-हिंद' शब्द के प्रति अपनी इसी भावना को दृष्टीगत रखते हुए मैने एक ग़ज़ल लिखी है जिसे आपके सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हुं | आप इसके बारे में क्या सोचतें हैं और आपको यह ग़ज़ल कैसी रही अपने विचारों से अवगत कराइएगा |

उनके नाम कि कीर्तन में गुजरते हैं सुबहो साम मेरे
उनकी भक्ति करके पुरे हो जाते हैं चारों धाम मेरे

तुमने कह दिया बस इमाम-ए-हिंद उनको
मेरे लिए तो खुदा हैं राम मेरे

हम भी तुम्हारे अकिदे की इज्जत में साहब कहते हैं
और तुमने जानबूझकर बिगाडे़ हैं नाम मेरे

मेरे खुदा को इंसान के बराबर कह दिया तुमने
और कितना करोगे खुदा को बदनाम मेरे

ये हमदर्दी का दिखावा मत करो खबरों में
वर्ना आजतक तो बस बिगाडे़ हैं तुमने काम मेरे

अपने खुदा की ईवादत का ईवादतखाना बनाने के काबिल हैं हम
तनहा भक्त है राम का और हैं श्रीराम मेरे

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      इस ग़ज़ल को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |

सोमवार, 3 अगस्त 2020

कविता , राखी अनमोल होती है

      नमस्कार , आपको रक्षाबंधन कि हार्दिक शुभकामनाएं | आज के इस पावन दिन पर मैने एक कविता लिखी है जिसे आपके सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हुं 

राखी अनमोल होती है

रंग बिरंगे रेशम के धागे के उपर
चक्र , चिडि़या , फूल , कबुतर
कि डिजाइनों से सजी हुई
दुकानों पर बिकती हुई
कलाईयों पर बांधे जाने के लिए तैयार
इन स्नेह बंधनों का अस्तीत्व
केवल इतना बस नही है
ये तो दिलों को , मन से , जीवन से
जीवनभर के लिए बांध देती हैं
और इनका छुट जाना रिश्तों का
टुट जाना हो जाता है

यही स्नेह बंधन है जो भाईयों को
भाई होने , कहलाने का दर्जा दिलाता है
यही स्नेह बंधन है जो भाईयों को
हजारों मिल दूर से भी बहन भाई को
एक दिन एक साथ ले आता है
कभी तोहफे के बराबर या कम
मत समझ लेना इसको क्योंकि
राखी अनमोल होती है

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ग़ज़ल , ये दरिया सैलाब तो हर साल लाती है


   नमस्कार , हमारा भारत देश तीन ओर से समुंदरों से घिरा हुआ देश है यही वजह है कि हमारे देश के तटवर्ती इलाकों में जमकर बरसात होती साथ ही पहाडो़ पर होने वाली बारिश वहा से निकलने वाली नदियों में बाढ़ ला देती है , असम , बिहार और आस पास के इलाकों में आने वाली बाढ़ इसी का नतीजा है जिससे हर बार लाखों लोंग प्रभावित होते हैं एवं सैकडो़ लोग अपनी जान गवांते हैं

     यहां मेरा सवाल यह है कि जब हमारी प्रांतीय सरकारों को हर साल आने वाली इस मुशीबत का अंजादा है तो फिर हर साल की इस आफत को दूर करने के लिए कोई ठोस कदम क्यों नही उठाए जाते | इन्ही सवालों को ध्यान में रखकर 28 जुलाई 2020 को एक ग़ज़ल लिखी है | मेरी यह ग़ज़ल कैसी रही आप मुझे जरुर बताईएगा

किसी के लिए यादों का मौसम बेमिसाल लाती है
किसी के लिए ये बारिश जीवन का काल लाती है

तुम पुख्ता क्यों नही करते सुखी जमीन का इंतजाम
ये दरिया सैलाब तो हर साल लाती है

ये मौतों का मंजर देखो और हुकुमतों से पुछो
ये सैलाब अपने साथ तबाही ही नही कई सवाल लाती है

इन आफतों का जिम्मेदार कौन जबाब कौन देगा
इस सवाल कि नजरअंदाजी ही बवाल लाती है

जिनके झोले मे वादे हैं बांटने के लिए
उनके लिए ये सैलाब मौंका मालामाल लाती है

तनहा यही तमाशा देख देख कर बडे़ हुए हैं हम
सियासत हर कमाल के उपर एक कमाल लाती है

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गाना , कि तेरे संग जीना है मुझको


   नमस्कार ,  27 फरवरी 2020 की सुबह मैने एक गाना लिखा था लेकिन तब मैं इसे यह सोचकर पोस्ट नही कर पाया की इस तरह के गाने आजकल के दौर में कौन पढे़गा पर जब मैने अपने ब्लाग पर ही देखा तो मेरी ऐसी कई रचनाएं पढी़ जा रही हैं तब मैं ने इसे प्रकाशित करने का मन बना लिया और आज इसे आपके हवाले कर रहा हुं

कि तेरे संग जीना है मुझको

सात सुर संगीत के
सात जन्मों का जीवन
सात दिनों में हर दिन
सात बचनों का बंधन
पावन प्रेम का मधुरस 
पीना है मुझको
कि तेरे संग जीना है मुझको
कि तेरे संग मरना है मुझको

तुझे मुस्कुराता देखुं
तो जैसे सुरज चंदा लगे
तुझे पास आता देखुं
तो जैसे वक्त ठहरा लगे
तेरा रुठ जाना ऐसे
जैसे घाव गहरा लगे
तेरी मखमली छुअन से
हर जख्म सिना है मुझको
कि तेरे संग जीना है मुझको
कि तेरे संग मरना है मुझको

दिलों कि मनमानी हुई
ये पुरी कहानी हुई
मैं समझने लगा हुं खुद को
राजा , जब से तू रानी हुई
कान्हा ही बस नही दिवाना
राधा भी दिवानी हुई
जिता है प्यार तेरा
सब से छीना है तुझको
कि तेरे संग जीना है मुझको
कि तेरे संग मरना है मुझको

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