गुरुवार, 25 जनवरी 2018

हमारा भारत अमर रहे

     आज हम सभी भारतीयों के लिए गौरव और अपने देश पर गर्व करने का दिन है , हम दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और हमारा संविधान दुनिया का सबसे बड़ा लिखित एवं निर्मित संविधान है | और आज मै लोकतंत्र के इसी पावन पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ आप सब को देता हूँ  | आज गणतंत्र दिवस के इस पावन पर्व पर मै सभी बलिदानीयो एवं वीर जवानो को नमन करता हूं और हमारे देश के शुखद भविष्य की कामना करता हूं |

हमारा भारत अमर रहे
हमारा भारत अमर रहे
   गणतंत्र दिवस के इस गौरवशाली मौके पर देश को समर्पित मेरी एक कविता -

हमारा भारत अमर रहे

लोकतंत्र का विसाल मन्दिर
हजारो  संस्कृतियों का मेला है
तरह के लोग है यहां
दुनिया में ऐसा देश अकेला है
आओ हम सब मिलकर एक साथ कहें
हमारा भारत अमर रहे

उत्तर मे खड़ा हिमालय जिसकी पहरेदारी करता है
दक्षिण मैं हिंद महासागर जिसके पाव खाता रहता है
जिसका राष्ट्र दोस्ती रंगों का है
जहां गंगा , यमुना , सरस्वती जैसी नदीयॉ बहे है
तो आओ हम सब मिलकर एक साथ कहें
हमारा भारत अमर रहे

आओ हम नमन करें अमर शहीद के  बलिदान को
हम नमन करें सीमा पर तैनात भी जवानों को
आज हमें प्रतिज्ञा करें
एक रहकर एक लय में विकास के पथ पर बड़े
आओ हम सब मिलकर एक साथ हैं
हमारा भारत अमर रहे

- हरिनारायण साहू

    मेरी यह कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्स के जरिए जरूर बताइएगा | अगर अपने  विचार को बयां  करते वक्त मुझसे शब्दों में कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मैं तहे दिल से माफी चाहूंगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार |

मंगलवार, 23 जनवरी 2018

मां पद्मावती की ओर से

   मैं अपने सभी देशवासियों एवं भारत सरकार से एक बात पूछना चाहता हूं की यदि भारत की सभी नारियों के सम्मान की रक्षा करना अगर हम सभी देशवासियों एवं भारत सरकार का कर्तव्य है तो क्या भारत की वीरांगनाओं जिन्हें इतिहास में एक गौरवशाली स्थान प्राप्त है उनके सम्मान की रक्षा करना भारत सरकार एवं  भारत के लोगों का कर्तव्य नहीं है , अगर कर्तव्य है तो फिर क्यों मां पद्मावती के सम्मान को इस तरह नीलाम किया जा रहा है |

मां पद्म

. आप मेरे इस विचार से सहमत हो या ना हो  मगर फिर भी मेरा एक विनम्र निवेदन है कि कृपया एक बार मेरी इस कविता ' मां पद्मावती की ओर से ' को जरूर पढ़ें -

13/01/2018

मां पद्मावती की ओर से

जरा सोचो तो भारत के लोगों
कैसे मुंह दीखाओ गे
जिस मेवाड के गौरव को
तुम ने मां पद्मावती माना है
उस मां का परिहास चलचित्र पटल पर
क्या तुम सहन कर पाओगे

कब तक सांत रहेगी जौहर की ज्वाला
क्या अब तुम्हारे रगो में खून नही बचा है खौलने वाला
मां को अम्मा कह देने से क्या मां की महानता ख़त्म हो जाती है
क्या चोरो को लुटेरा कह देने से चोरी की गलती कम हो जाती है
अगर तुम ने सिनेमाघरो मे जाकर इस चलचित्र का प्रसारण देखा तो
सिर तो रहेगा मगर सिर उठाकर चल नही पाओगे
भारतीयो की मातृभक्ती को सदा के लिए कलंकीत कर आओगे

    मेरी यह कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्स के जरिए जरूर बताइएगा | अगर अपने  विचार को बयां  करते वक्त मुझसे शब्दों में कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मैं तहे दिल से माफी चाहूंगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार |.

शनिवार, 21 अक्तूबर 2017

क्या बेटी होना ही गुनाह है मेरा ?

      बेटियां ही मां होती हैं , बेटियां ही बहने होती है , बेटियां ही पत्नी बनती , संसार का ऐसा कोई भी रिश्ता नहीं है जो बेटियों के बिना पुरा हो सके | लेकिन सच्चाई यह है कि आज भी हमारे देश में कंया भ्रुण हत्या होती है , आज भी हमारे देश में बेटियों के प्रति हीन भावना है | लोग आज भी बेटियों को बेटों से कामतर आंकते हैं , यह बहुत ही दुखद है लेकिन सच्चाई यही है | जबकि बेटियां आज दुनिया में हर क्षेत्र में अपना लोहा मनवा चुकी हैं , चाहे वह अंतरिक्ष विज्ञान हो , तकनीकी हो, उद्योग हो | यही नहीं हमारे देश की बेटीया आज बेटो के साथ कंधे से कंधा मिलाकर देश की सुरक्षा में तैनात हैं |

बेटी

        हमारी सरकार के लाखों प्रयासों के बावजुत भी कंया भ्रुण हत्या जैसे जघन्य अपराघ पर पुरी तरह से काबू नही पाया जा चुका है | आज भी हमारे समाज ने बेटियों को वो अधिकार वो समानताएं नही दी हैं जो बेटो को प्राप्त है | मैने अक्सर यह महसूस किया है कि जब किसी घर में बेटा पैदा होता है तो लोग खुशियां मनाते हैं , बधाइयां देते हैं लेकिन जब बेटी पैदा होती है तो लोग मायूस हो जाते हैं | आखिर ऐसा क्यों है ? और कब खत्म होगी यह बेटियों के प्रति हीन भावना ?..| इन्हीं ख्यालो , इन्हीं सवालों के वशीभूत होकर मैंने एक कविता की रचना की है |मुझे उम्मीद है कि मेरी यह कविता मेरी भावनाओ को रेखांकित करेगी | कविता का शीर्षक है 
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क्या बेटी होना ही गुनाह है मेरा ?

मैं कोख में ही मरती हूं
मैं दहेज की आग में जलती हूं
परिवार के लिए एक बोझ हूं
बरसों से खामोश हूं
कौन सुनेगा कहना मेरा
क्या बेटी होना ही गुनाह है मेरा ?

मैं प्यार का स्वरूप हूं
मैं मातृत्व का प्रतीक हूं
फिर भी मेरा अस्तित्व क्यों खतरे में है
फिर क्यों मैं भयभीत हूं ?
फिर क्यों तय हो जाता है कोख में ही मरना मेरा ?
क्या बेटी होना ही गुनाह है मेरा ?

बेटी

एक बात मुझे हमेशा तड़पाती है
मेरे पैदा होते ही उदासी क्यों छा जाती है ?
क्या मैं बोझ हूं ? , पर क्यों ?
क्या मैं लाचार हूं ? , पर क्यों ?
हक है मिले जीवन को जीना मेरा
क्या बेटी होना ही गुनाह है मेरा ?

जब मैं पत्नी होती हूं , तो परिवार की सेवक होती हुं
जब मैं मां होती हूं , तो परिवार की पालक होती हुं
मैंने हर रिश्ते को पुरी वफादारी और जीजान से सींचा है
फिर क्यों बेटों से रुतबा मेरा नीचा है
क्या गलत है यह कहना मेरा
क्या बेटी होना ही गुनाह है मेरा ?

      यह कविता आपको कैसाी लगाी मुझे अपने कमेंट्स के जरिए जरूर बताइएगा | मेरे विचार को व्यक्त करते वक्त अगर शब्दों में मुझसे कोई त्रुटि हो गई हो तो मै इसके लिए छमा प्रार्थी हूं | मेरी एक नई भावना को व्यक्त करने मैं जल्द ही आपसे बातें करने वापस आऊंगा , तब तक अपना ख्याल रखें , अपनों का ख्याल रखें , बड़ों को सम्मान दें , छोटो से प्यार करें , नमस्कार |

गुरुवार, 19 अक्तूबर 2017

दीपावली पर एक नया चिराग जलाओ ना


दीपावली
   
  आप सबको दीपावली की बहुत-बहुत शुभकामनाएं एवं मंगलकामनाएं | दीपावली प्रकाश का पर्व है , अज्ञानता से ज्ञान की ओर गमन का पवित्र संदेश देता है | दीपावली पर्व का इतिहास बताता है कि दीपावली पर्व खुशियों के घर आगमन का प्रतीक है | घर के आंगन में जलते कतारबद्ध दीपों की रोशनी सभी प्रकार के दुख रूपी अंधकार को दूर कर एक नई ऊर्जा भर देती है |

दीपावली

        दीपावली हमारे देश के कोने - कोने में एक समान रुप से मनाई जाती है | जलते हुए दीपकों की रोशनी में आतिशबाजी का आनंद इस त्यौहार की गरिमा है | दीपावली के दीए हमारे घर के वातावरण को तो रोशन कर देते हैं , ज्ञान के उजाले की ओर जाने की प्रेरणा तो देते हैं लेकिन क्या हम लोग अपनी सोच में वह उजाला लाते हैं ? | दिवाली के इस शुभ अवसर पर मैंने एक कविता लिखी है | मुझे उम्मीद है कि मेरी यह कविता सोच के एक 
नए दीए की रोशनी से ओतप्रोत है |

एक नया चिराग जलाओ ना

नए सुबह की नई रात है
पर रुढीयो की अभी वही पुरानी बात है
अपने नए ज्ञान से तुम
अज्ञानी अंधेरों को मिटाओ ना
          एक नया चिराग जलाओ ना

दीपावली

मत मारो तुम कोख मे हीं मैया
अपने प्यारे बचपन को
हर सुख देगी , कुछ न लेगी
भर देगी घर - आंगन को
बदल रही है पूरी दुनिया
थोड़ा तुम भी बदल जाओ ना
          एक नया चिराग जलाओ ना

हर तरफ हो भाईचारा
दुनिया में अमन की सुगंध महके
प्यार भरा हो जल - नभ में
सब को प्यार सिखाओ ना
          एक नया चिराग जलाओ ना

यह कविता आपको कैसाी लगाी मुझे अपने कमेंट्स के जरिए जरूर बताइएगा | मेरे विचार को व्यक्त करते वक्त अगर शब्दों में मुझसे कोई त्रुटि हो गई हो तो मै इसके लिए छमा प्रार्थी हूं | मेरी एक नई भावना को व्यक्त करने मैं जल्द ही आपसे बातें करने वापस आऊंगा , तब तक अपना ख्याल रखें , अपनों का ख्याल रखें , बड़ों को सम्मान दें , छोटो से प्यार करें , नमस्कार | दीपावली पर एक नया चिराग जलाओ ना

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