शुक्रवार, 24 मार्च 2017

बिकाऊ है

   'बिकाऊ है' मैंने यह हास्य व्यंग कविता  हमारे समाज में फैले दहेज प्रथा जैसे विषाक्त  कुरीति से प्रेरित होकर लिखा है | दहेज प्रथा हमारे समाज  की एक ऐसी  कुरीति है , एक ऐसी बुराई है जिसने विवाह जैसे पवित्र रिश्ते को मात्र एक व्यापार बना कर रख दिया है | जहां ऐसा लगता है कि शादी दो दिलों का रिश्ता ना होकर , दो परिवारों का रिश्ता ना होकर  मात्र क्रेता और विक्रेता का रिश्ता हो | जहां वर पक्ष विक्रेता और वधू पक्ष क्रेता होते हैं |        
                
दहेज प्रथा

       जहां वर के मूल्य का आकलन उसके शिक्षित और कामकाजी होने के आधार पर किया जाता हैविवाह में इसी व्यापार के वजह से आज बेटियां मां बाप के लिए  बोझ स्वरूप लगती हैं | दहेज की इसी आग में हर रोज हजारों बहू बेटियों प्रताड़ित किया जाता है  यहां तक कि दहेज की इस आग में  कभी-कभी बहू बेटियों को जला तक दिया जाता है


 हमारी बहू बहन-बेटियों की गरिमा एवम सुरक्षा के लिए यह बहुत जरूरी हो गया है कि हमारे समाज , हमारे देश का प्रत्येक व्यक्ति इसे अपने स्तर पर खत्म करने का बीड़ा  उठाए | नहीं तो मुझे लगता है कि कुछ दिनों बाद कुछ इस तरह से अखबारों में  विवाह के लिए विज्ञापन दिए जाएंगे -

बिकाऊ है
इच्छुक ग्राहक संपर्क करें
खत एवं ईमेल की सुविधा भी उपलब्ध है
कृपया देर बिल्कुल भी ना करें
ऐसा मौका ना गवाएं
भारी छूट का लाभ उठाएं
                   
दहेज प्रथा
उम्र 24 साल
कद 5 फुट 10 इंच है
रंग गोरा शरीर मजबूत है
युवक शिक्षित एवं नौकरी धारक है
सालाना आय 6 अंको में है
गृहकार्य में भी महारत हासिल है
विवाह के लिए सुयोग्य
जाति एवं धर्म बंधन है
कीमत मात्र 1000000 रुपए से शुरू
इससे दुगनी कीमत देने वालों को
प्राथमिकता दी जाएगी
कृपया इन माध्यमों से संपर्क करें

वैधानिक सूचना
युवक की उपयोगिता का आश्वासन 
विक्रेता द्वारा नहीं दिया जाता
बिका हुआ माल वापस नहीं लिया जाता
शर्तें लागू

  
मेरी यह हास्य व्यंग कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्स के जरिए जरूर बताइएगा | अगर अपने  विचार को बयां  करते वक्त मुझसे शब्दों में कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए माफी चाहूंगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार |

सोमवार, 13 मार्च 2017

इस होली में आना सजन

 इस होली में आना सजन

  आप सभी को होली की हार्दिक शुभकामनाएं , हैप्पी होली | होली का त्यौहार यानी एक प्रतीक  बुराइयों को जलाकर अच्छाइयों को अपने जीवन में अपनाने का संदेश , दुश्मनी भूलकर दोस्तों दुश्मनों को एक साथ गले लगाने का दिन , हंसी- ठिठोली , मस्ती - मजाक जीजा - साली , देवर - भाभी , साजन - सजनी के नोक झोक  का एक बहाना |

  
होली के इस पावन मौके पर मेरी एक गीत जिसमें एक सजनी अपने साजन को होली पर  घर वापस आने को निवेदन कर रही है और कह रही है -

                              इस होली में आना सजन

 
रंगों की थाल सजी है
 
सब कुछ है पर तेरी कमी है
 
अब कसम है तुझको मेरी
 
आकर भर दे घर का आंगन
 
इस होली में आना सजन


 इस होली में आना सजन

 
जब से तुझको पाती लिखी है
 
मेरी नजरें तरस रही हैं
 
कर दिया तुमने वादा
 
आकर  तुम निभाना बचन
 
इस होली में आना सजन

 
वह जो मेरी प्रिय सखी है
 
तेरे नाम से  चिढ़ा रही है
 
ऐसे मुझसे दूर रहकर
 
मन की ना बढ़ाना अगन
 
इस होली में आना सजन

 
यह कलियां मुझसे कहती हैं
 
यह जो ठंडी हवाएं बहती हैं
 
तुमको यह संदेशा मेरा
 
मेरे दिल को तेरी लगन
 
इस होली में आना सजन
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मेरी यह गीत आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्स के जरिए जरूर बताइएगा | अगर अनजाने में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए माफी चाहूंगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार |
 

सोमवार, 13 फ़रवरी 2017

वैलेंटाइन डे की ख्वाहिश ,काश अपनी भी कोई सनम होती

        सबसे पहले आप सभी को वैलेंटाइन डे की बहुत-बहुत सारी शुभकामनाएं, फिर मेरा प्यार भरा नमस्कार | दोस्तों ,वैलेंटाइन डे का नाम आते ही दिल में सिर्फ एक ही ख्याल आता है 'प्यार' वैलेंटाइन डे प्यार को मनाने का दिन, प्यार से मिलने का दिन, प्यार को महसूस करने का दिन, प्यार को जताने का दिन | एक ऐसा दिन जिसका हर घड़ी, हर लम्हा, हर वक्त प्यार के नाम होता है | जिस दिन का इंतजार हर प्रेमी को इतनी बेसबरी से होता है कि शायद उतनी बेसब्री से रेगिस्तानी जमीन को बारिश का भी ना हो |

वैलेंटाइन डे

        लेकिन जिन लोगों के पास अभी तक उनका वैलेंटाइन नहीं है मेरी तरह उनकी भावनाएं , उनकी ख्वाहिशों को सहेजते हुए मैंने पहली बार ग़ज़ल लिखी है उम्मीद है आप सभी के दिल में उतर जाएगी | गजल कुछ यूं है

                                                     काश अपनी भी कोई सनम होती

उसे जान देकर भी निभाता अगर ऐसी कोई कसम होती
काश अपनी भी कोई सनम होती

कांच समझ कर तोड़ देती या फूल समझकर नाजो मे रखती मेरे दिल को
चाहे रहम दिल चाहे बेरहम होती

यूं तन्हा वीरान जिंदगी तो नहीं गुजरती रेगिस्तान की तरह
भले ही वह जख्म या मरहम होती

वैलेंटाइन डे की ख्वाहिश ,काश अपनी भी कोई सनम होती

किसकी जीद है की मिले तो जन्नत की हूर ही मिले
चांद सी खूबसूरत या चांद से थोड़ा कम होती

किसी का चेहरा नहीं उसकी आंखें बयां करती है उसका दर्द
लिख देता प्यार उसकी जिंदगी में जो मेरे पास खुदा की कलम होती

किसी का दो पल का मुस्कुराना कितना सुकून दे सकता है उन्हें मालूम ही नहीं
उनकी चाहत हक़ीक़त नहीं भी तो वहम होती

क्या यूं भी कोई दुआ कर सकता है अपने लिए हरी
वह बेवफा सही मेरी ही हर जन्म होती

        मेरी यह गजल आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्स के जरिए जरूर बताइएगा | अगर अनजाने में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए माफी चाहूंगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार |

बुधवार, 25 जनवरी 2017

यही तो हमारा हिंदुस्तान है


        नमस्कार ,मैं हरि नारायण साहू आप सभी का तहे दिल से एक बार फिर अपने ब्लॉग पर स्वागत करता हूं | आप सभी को हमारे गणतंत्र दिवस 26 जनवरी की हार्दिक शुभकामनाएं देता हूं | मेरी भावनाओं को लिखते हुए यदि मुझसे शब्दों में कोई त्रुटि हो गई हो तो उसके लिए क्षमा प्रार्थी हूं |

        दोस्तों ,आप सभी जानते ही हैं कि 26 जनवरी गणतंत्र दिवस हमारे देश का राष्ट्रीय पर्व है | इसी दिन 26 जनवरी 1950 को दुनिया के सबसे बड़े गणतंत्र का आगाज हुआ था | हमारा देश भारत एकता, अखंडता , सहिष्णुता , भाईचारे का प्रतीक है | यहां कई भाषाएं और सैकड़ों बोलियां बोली जाती हैं | हमारा देश भारत कई प्राचीन सभ्यताओं की जन्म स्थली है | हमें इस बात के लिए गर्व महसूस करना चाहिए कि हमारे देश का संविधान दुनिया का सबसे बड़ा संविधान है जो लिखित रूप में है | संविधान में 6 मौलिक अधिकारों और 10 मौलिक कर्तव्यों का वर्णन किया गया है जो भारत के सभी नागरिकों पर एक समान रूप से प्रभावी होते हैं | नागरिकों के अधिकारों की रक्षा का दायित्व शासन प्रशासन का है | लेकिन इन सब बातों में गरीबी,बेरोजगारी ,अशिक्षl जैसे कुछ सच है ऐसे भी है जो हमारी देश की आभा में नासूर बन कर चुभते हैं | और हमारी कुछ कमियों का लगातार एहसास कराते हैं |

हमारा हिंदुस्तान

       गणतंत्र दिवस के इस पावन अवसर पर मैंने अपनी भावनाओं को कविता का रूप देने की कोशिश की है आशा है कि आप सभी को पसंद आएगी | कविता का शीर्षक है,

                                                      'यही तो हमारा हिंदुस्तान है '

हजारो रंग जहां मानवता के
सैकड़ो बोलियां भाषाएं हैं
विभिन्न जाति धर्मों का संगम स्थल
नई प्राचीन विविध अलौकिक सभ्यताएं हैं
कई नाम है इस मिट्टी के
एकता, सहिष्णुता ,भाईचारा ,स्वतंत्रता , पंथनिरपेक्षता आदि इसकी उपमाएं हैं
तीन मौलिक भावनाएं समेटे हुए
 पहचान है
यही तो हमारा हिंदुस्तान है

हमारा हिंदुस्तान

यहां राजस्थान की मिट्टी है
जहां महाराणा प्रताप हुए
दुश्मनों का सीना चीरा
ऐसे मराठा छत्रपति शिवाजी महाराज हुए 
झुकना जिसने माना नहीं ,ऐसी स्वाभिमानी थी
स्वयं त्याग दिए प्राण रण में , वह झांसी की रानी थी
स्वतंत्रता के खातिर लाखो बेटों ने शीश चढ़ाए थे 
कितनों ने जेलों में गुजारी अपनी जवानी थी 
हंसते-हंसते झूल गए फांसी पर
आजादी के दीवाने
स्वतंत्रता संघर्ष की आहुति में
कितने ही बोस , प्रसाद हुए
फिरंगियों की बुनियाद हिला दी
ऐसे चंद्रशेखर आजाद हुए
जो कर ना पाए गोली बंदूके
बारूद , कटार और तलवारों ने
अहिंसा के मार्ग पर चलकर
वह कर दिखलाया गांधी बापू ने
आज यह जो आजादी है
सिर पर खुला नीला आसमान है
यह उन्हीं देशभक्त क्रांतिकारियों का बलिदान है 
यही तो हमारा हिंदुस्तान है

हमारा हिंदुस्तान

गलियारों , बाजारों में रौनक आ जाती है
जब क्रिसमस, होली ,दिवाली ,ईद आती है
जब कुर्बत में कोई मां कहीं नौकरानी बन जाती है
तब कहीं घर का पेट और परिवार का तन ढाक पाती है
जहां कहीं कोई नारी आबरु बचाने को बिनतियां जानाति है
भीड़ तमाशबीन बन कर देखती रह जाती है पढ़ने की उम्र में बालक, बालिकाए जहां
रद्दी बीनकर ,बेचकर दो वक्त की रोटी कमााती है जिस देश की एक चौथाई आबादी
गरीबी रेखा के नीचे जीवन बिताती है
फिर भी चेहरों पर मुस्कान है
दिल में एक ही भावना ,मेरा भारत महान है
यही तो हमारा हिंदुस्तान है

हमारा हिंदुस्तान

यहां झूमकर सावन आता
प्यार भरे गीत मयूर गाता
प्रियसी के होंठों की लाली से लगती
किसान को खेती की हरियाली
कहीं फूलों पर तितलियां मडराई
आम पर बौर आगए
कहीं उछलता कूदता बचपन है तो
जैसे कल -कल -कल बहता नदियों का पानी
मां के अंचल सी लगती पेड़ों की छाया
फसलों को सहलाते हुए देखो कहीं से बसंत आया
हंसी ठिठोली धमाचौकड़ी करने का यह बहाना है
अभी फागुन को तो आना है
सभी मौसम रितुए यहां की मेहमान है
यही तो हमारा हिंदुस्तान है
यही तो हमारा हिंदुस्तान है

       मेरी यह कविता आपको कैसी लगी जरूर बताइएगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार |

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