शनिवार, 30 नवंबर 2019

कविता, चौथ का चांद है

      कविता , एक अलग तरह कि कविता पढ के देंखे यह कविता शायरी कि तरह है मैने भी जब इसे लिखा था तो मै यही सोच रहा थाकि यह कविता है की नज्म पर जहा तक मुझे पता है यह कविता हि है

सौहर ने बेगम को देखकर ये कहा
वाह क्या बात है चौथ का चांद है

माशुक ने माशुका को देखकर ये कहा
पहली मुलाकात है चौथ का चांद है

शायर ने शायरा को देखकर ये कहा
हूस्न लाजबाब है चौथ का चांद है

जीजा ने साली को देखकर ये कहा
नयी नयी गुलाब है चौथ का चांद है

मयकदे में शराबी ने मय को देखकर ये कहा
भरी हुई गिलास है चौथ का चांद है

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      इस कविता को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |

कविता, जिसके पास रजाई नही है

   नमस्कार , ठंड का मौसम कई मायनों में सब के लिए अलग अलग चीजों के लिए याद रहता है कुछ के लिए मिठे एहसास तो कुछ के लिए कडवे और एक चीज जो इसके केंद्र में रहती है वो है रजाई | पर आज मै इस कविता के माध्यम से हमारे देश भारत के उस वर्ग की बात जो गरिबी रेखा के निचे आते है जिनके नसिब में दो वक्ता भर पेट खान नही है तन पर पुरे कपडे नही है मगर शायद हमारे इसी देश का एसी कार से धुमने वाली बहुमंजिला इमारतों में रहने वाला हवाई जहाज में शफर करने वाला वर्ग समझ ही नही सकता | वैसे तो भारत कि कई जगह कि सर्दीया मसहुर है मगर दिल्ली कि सर्दी की बात ही अलग है

जिनके पास रजाई नही है

अपने बिस्तर पर
अपनी रजाई में दुबका हुआ हुं मै
इस सच से बेखबर की
यही ठंड तो उनके लिए भी है
जिनके पास रजाई नही है
मखमल का कंबल नही है
कंबर तो दूर पुरे तन पर वस्त्र नही हैं
विवाईयां हैं पाव में चप्पल नही है
बिमारीयां तो बहुत हैं
मगर दवाई नही है
और मै सबसे कहता फिरता हुं
बहुत ठंड है

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कविता, अंगीठी , चमगादड

     नमस्कार , अभी तक मैने अपनी हिन्दी मे जो सभी पोस्ट की है उनमें केवल एक रचना पोस्ट कि है पर आज दुसरी बार दो कविता रचनाएं पोस्ट कर रहा हुं मुझे उम्मीद है कि आपको अच्छा लगेगा |

अगीठी

कुडकुडाती ठंड में
रात कि गिरती ओश में
सूबह के जाडे में
हाथों को जमने से
पुरे बदन को ठीठुरने से
कानों को गलने से
कौन बचाती है
अंगीठी

चमगादड

उल्टी फितरत
टेढी नियत
आवाज की तेजी
पंखो की ताकत
डरावनी सुरत
नाम जरुरत
दुश्मनों मे दहशत

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कविता, कल कि रात , तलाक बीच में

      नमस्कार , अभी तक मैने अपनी हिन्दी मे जो सभी पोस्ट की है उनमें केवल एक रचना पोस्ट कि है पर आज पहली बार प्रयोग के तौर पर दो कविता रचनाएं पोस्ट कर रहा हुं मुझे उम्मीद है कि आपको अच्छा लगेगा |

कल कि रात याद रहेगी

जब तुमने मुझे गहरी नींद से उठाया था
कुछ कहना है कहके बालों को सहलाया था
मुंह से चुप रहकर आखों से सब बताय था
मेरे हाथ मे अपना हाथ रखकर पलकों को
मुस्कुराकर शर्माकर झुकाया थां
तेरी मिठी सिसकीयों शदा सदा रहेगी
कल कि रात याद रहेगी

तलाक बीच में कहां से आया

प्यार हमारा , तकरार हमारी
रिश्ता हमारा , तफरत हमारी
सफर हमारा , मंजील हमारी
शेर हमारा , महफिल हमारी
ये हीज्र बीच में कहां से आया
तलाक बीच में कहां से आया

माना के सब ठीक आजकल नही है
पर ये रिश्ता अभी विफल नही है
क्या हुआ गर हम अभी सफल नही हैं
मगर अलगाव मुश्किलों का हल नही है
हमारे दरमियान ये दखल कहां से आया
तलाक बीच में कहां से आया

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