गुरुवार, 5 सितंबर 2019

कविता, गुरू का है प्रथम स्थान

      नमस्कार, शिक्षक दिवस की आपको हार्दिक शुभकामनाएँ | भारत के सबसे उज्जवल एवं सबसे लोकप्रिय शिक्षक एवं हमारे देश के पूर्व उप राष्ट्रपति ,राष्ट्रपति डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म दिवस पर मेरे सभी गुरुजनों एवं दुनिया के समस्त गुरुजनों को समर्पित करते हुए मैने एक कविता लिखी है जिसे मैं यहां प्रकाशित कर रहा हूं

गुरू का है प्रथम स्थान

शब्द आपके दिए मुझे
विद्या आपने दी मुझे
उच्चारण आपने सिखाया मुझे
हर विषय आपने पढाया मुझे

मेरे मुख पर लफ्ज लफ्ज आपका है
मेरी हर कविता का शब्द शब्द आपका है
अच्छे बुरे में फर्क समझाया आपने
मै लिख सका, मै पढ सका, मै बोल सका
वो भाषा सिखाया आपने

मेरी कड़ी परीक्षाए लेकर
मेरी हर खूबी को निखारा आपने
जब मैने कड़ी मेहनत करने से बचना चाहा
तो डराने के लिए मारा आपने
आपकी हर डाट का आभार
हर छड़ीमार का आभार
प्रभु गोविंद ने दिया बता
गुरू का है प्रथम स्थान
आपको मेरा नतमस्तक प्रणाम

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      इस कविता को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |

मंगलवार, 3 सितंबर 2019

कविता, गणपति गजमुख गौरीनंदन गणेश

     नमस्कार, आप सब को गणेश चतुर्थी कि हार्दिक शुभकामनाएँ | देवो के देव महादेव के बड़े सुपुत्र प्रथम पूज्य गणपति गजमुख गणेश अब से ग्यारह दिनों तक हमारे घरों में विराजेंगे हम उनकी पुजा अर्चना करेंगे और मुझे आशा है कि वो हमारी सारी मनोकामनाों को पुरा करेंगे | मैं ने आज एक नयी कविता गणपति बप्पा के चरणों में चढ़ावन स्वरूप लिखी है जिसे यहां आपका प्यार पाने के लिए प्रस्तुत कर रहा हूँ

गणपति गजमुख गौरीनंदन गणेश

गणपति गजमुख गौरीनंदन गणेश
लंबोदर एकदंत विनायक प्रथमेश
विघ्नहर्ता सब सुख करता
पाप नाशक सब दुख हरता
सिद्धी बुद्धि संग विराजे
सर्प मयूर मूषक तीन सवारी
मेवा मोदक भोग लागे
एक विनती लाया हूं दरबार तुम्हारी
देवा सूनलो अरज हमारी
प्रथम आरती तुम्हारी

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कविता, अब तुम्हें क्या कविता सुनाउ मैं

    नमस्कार, एक नयी कविता जो मैने पिछले कुछ दिनों के मध्य में लिखी है आज आप की दरबार में रख रहा हूँ अगर आपको पसंद आए तो मुझे जरूर बताए

अब तुम्हें क्या कविता सुनाउ मैं

अब तुम्हें क्या कविता सुनाउ मैं
किसी छंद सी तुम्हारी हंसी
कई अलंकार का समावेश लगी
उपमा तुम्हें क्या दुं
कही नयी विधा ही न बन जाए काव्य की
इसे जग अतिप्रसंसा भले ही कहे
पर कही कालिदास न हो जाउ मैं

सिंगार रस छलकाती तुम्हारी ये
प्रेम से सराबोर निगाहे
निशा का ये नितांत सूनापन
किसी गागर सा भरा यौवन
उस पर प्रेम पाने को आतुर होता मन
ऐसे समय पर कविता की
हर पंक्ति भुल जाउ मैं
अब तुम्हें क्या कविता सुनाउ मैं

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कविता, मैने तुमको कब देखा था

    नमस्कार, एक नयी कविता जो मैने पिछले कुछ दिनों के मध्य में लिखी है आज आप की दरबार में रख रहा हूँ अगर आपको पसंद आए तो मुझे जरूर बताए

मैने तुमको कब देखा था

मैने तुमको कब देखा था
यू थक कर मुस्कुराते हुए
मैने तुमको कब देखा था
यू कुछ बडबडाकर मुंह बनाते हुए
मैने तुमको कब देखा था
यू मुझ पर झल्लाते हुए
मैने तुमको कब देखा था
कुछ मन ही मन गुनगुनाने हुए
मैने तुमको कब देखा था
मेरे पास आते हुए
मैने तुमको कब देखा था
मेरी डायरी छिपाते हुए
मैने तुमको कब देखा था
चीज़े रखकर भुल जाते हुए
बोलो ना
मैने तुमको कब देखा था
पहली बार जुल्फे लहराते हुए
बोलो ना
यू चुप मत रहो
अब तुम्हारी चुप्पी खल रही है मुझे

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