शनिवार, 9 फ़रवरी 2019

कुछ रुह की सुना दूँ 3 , शेरो शायरी

  नमस्कार , कुछ और शेर कुछ मिसरे यू देखें के

ये नए जमाने का दौर है झूठ को सच मानते हैं
अंधेरे चरागों से चराग होने का सबूत मांगते हैं

इस मोहल्ले में रहने का अब वो मजा नहीं आता
मेरी खिड़की से मुझे मेरा चांद नजर नहीं आता
.
वो रौब से गुजारिश करते हैं कभी कभी
अरजीया इस तरह तो नहीं लगाई जाती

आज मैं फिर मेरे ईमान को नहीं जला पाया
खाली हाथ हूं इसलिए कि खुद की क़ीमत नहीं लगा पाया

अब कहां इस जहां में सच्चा इंसान मिलता है
यह वो बाजार है जहां कौड़ियों के भाव ईमान बिकता है

मजहब के आंड में हकीकत को झूठलाने लगे हैं  लोग
खुद के चिराग बुझाकर जुगनुओं पर उंगली उठाने लगे हैं लोग

वह देखिए तूफान पड़ा है बिखरा हुआ
सोच कर आया था कि मुझे रेजा - रेजा तोड़ देगा

मैं इस तरह से यू नजर नहीं आता
कुछ खो जाने का डर होता तो ठगों के इलाके में नहीं आता

मैं एक दरिया ही अच्छा हूं वह सागर  बनकर क्या फायदा
जो एक तिशनगी तक बुझा नहीं सकता

अपनी मातृभूमि के लाल हैं बब्बर शेर का कलेजा रखते हैं
जो ताले लगा दे हौंसलों पर हम उन कानूनों के दायरे में नहीं आते

मुझे मेरी काबिलियत का आइना मत दिखाओ जालिमो
सागर अपनी गहराई जानता है

मैं एक हीरा हूं जिसे लोग ईमान कहते हैं
मेरी कीमत सिर्फ उतनी नहीं जितनी जोहरी लगाता है

मैं अपनी आपबीती किसे सुनाऊं तितलियों
मैं दिल की कहता हूं तो लोग हंस कर टाल देते हैं

चंद लफ़्ज़ों की बात नहीं है कि कुछ सैकड़ा पन्नों में आ जाए
जिंदगी से किताब होती है किताब से जिंदगी नहीं होती

दिल की कहने से पहले उनका मिजाज भाप लेना जरूर
ठंडी बयार और लू में फर्क होता है #

बिना बेटियों के घर कैसा होगा
बिना चिड़ियों के घोसला देख लेना

सर्द झोंकों को मामूली समझकर चरागों को अटारी पर नहीं रखते
कभी होश , कभी पानी , कभी बस्तियां कभी , छप्पर ये हवाएं नजाने क्या-क्या उड़ा लेती हैं

मुल्क की असलियत और तरक्की देखनी है तो मजहब का चश्मा उतारिए
कोहरे में साफ रोशनी नजर नहीं आती

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कुछ रुह की सुना दूँ 2 , शेरो शायरी,

  नमस्कार , कुछ शेर कुछ मिसरें यू देखें के

आपकी आदत का ये हिस्सा भी बेहिसाब है
जमाने भर की बुराई खुद करके कहते हैं ,जमाना खराब है

प्यार करना , मगर जबरन हक मत जताना
उनका प्यार फूल है , फूलों को जरा आहिस्ता सहलाना

वह अगर तुमसे रूठ जाए , यह हक है उनका
तो तुम  उन्हें मनाना , तुम भी उनसे मत रुठ जाना

बड़ा अलग सा सुकून मिलता है ऐसा करने में
तुम भी कभी बेवजह मुस्कुराया करो

जवानी में भी बच्चा मां के लिए सिर्फ बच्चा होता है
उसे उसके बढ़ती उमर नजर नहीं आतीअक्सर पड़ी रहती है किसी कोने में सामान की तरह
जवानी में बच्चों को मा , मा नजर नहीं आती

चंद सांसे ना मिली तो इस जहां से रुकसती हो जाती है
रत्ती भर जिंदगी है बस

हां ये सच है मैं टूटा जरूर हूं
मगर मुझे कांच सा बिखरना नहीं आता #

वो और लोग होंगे जो अपने रुख से पलट जाते हैं
सच बात कह कर मुझे मुंकरना नहीं आता #

वो हर छोटी मोटी बात का हिसाब करते हैं
मुझे यह समझ में नहीं आता वो प्यार करते हैं कि मजाक करते हैं

नाजुक गुलाब की पंखुड़ियों को नोचकर इधर-उधर फेका जाता है
नाराजगी कभी-कभार यूं भी जताई जाती है #

सिक्के के दो पहलू एक तरफ नहीं हो सकते
सौदागर से मोहब्बत नहीं होती या मोहब्बत में सौदायगी नहीं होती

कद बढ़ा , हाथ पहुंचे तो ठीक वरना ना सही
मैं रेत के टीलों पर चढ़कर आसमान नहीं छूना चाहता

वो अक्सर पूछते रहते हैं यह तुम्हें कैसे मालूम जब मैंने बताया ही नहीं
उन्हें यह नहीं मालूम कि मुझे आंखों से चेहरे पढ़ने की आदत है

अगर कहीं पर्दा है तो रहना जरूरी है
इंसान को इंसान बना रहना जरूरी है

चाकू-छुरी तलवार खंजर इनकी जरूरत क्या है
बस एक लफ्ज़ कलेजा चीर सकता है

कागज के चंद टुकड़ों में आकर मोहब्बत को नीलाम कर देता
मैं भी तुम्हारी तरह होता तो तुम्हें बदनाम कर देता

जहां भी रहूं जिस हालात में भी रहूं मैं आदतन सच कहता हूं
यह एक ऐब और भी मुझ में है

कालीख को उसने राख से उजला कर दिया
एक सितारे की चमक ने  इंसानी लाशों को धुंधला कर दिया

सच कहना गुनाह है तो गुनहगार हूं.
अगर कानून ये है तो सजा का हकदार हूं

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कुछ रुह की सुना दूँ 1, शेरो शायरी

  नमस्कार , कुछ और शेर कुछ मिसरे यू देखें के

यहां खचाखच भीड़ है कुछ मांगने वालों  की
आप कुछ देने वाले हैं तो उधर से निकल जाइए

मेरे करीब से तेरा गुजर जाना भी  कयामत ढाता है
मुझे देखकर तेरा मुस्कुराना भी कयामत ढाता है

खूबसूरती इतनी है कि उफ
यूं बात-बात पर तेरा रूठ जाना भी कयामत ढाता  है

सावन में उष्ण हे फागुन में नमी हो रही है
मसला ये था ही नहीं , कही की बात है और कहीं हो रही है

कब्रों में रहने वालों की किमत नही समझती
दुनियां कब्रों को बड़ा समझती हैं

भले आसमानों पर आज के उस्तादों का कब्जा है
मगर पुराने दरख़्त नए परिंदों को आसरा देते हैं

गमों ने रिस रिस कर दिल में दर्द का समंदर बना दिया है
यू ही तनहा नही हो गया हूं मैं

हवा पानी जमी आसमा की बिसात न बदल दे वो
वो बदलने पर आया है खुदा कहीं तेरी जात न बदल दे वो

चांद का नूर जरा जरा सा बढ़ता जा रहा है
कोई है के पल पल दिल में उतरता जा रहा है

गुरबत और अमीरी की नाराजगी तो देखिए
तालाब दिन पर दिन सूखते जा रहे हैं समंदर है के बढ़ता जा रहा है

नाराजगी का दायरा चाहे जो कुछ भी हो
अगर किसी से उम्र भर की दोस्ती हो जाए तो निभानी पड़ती है

खुद अपने हाथ से अपनी दुनिया बेरंग मत करो यारों
आंख पर पट्टी लगाकर लुका छुपी खेलने वालों

तेरी एक छोटी सी झुकती हुई नजर वाली मुस्कान ने मार डाला मुझको
वरना मरना इतना भी आसान नहीं है

यूं भी नसीब का मजाक मत उड़ाया करो यारों
चलने से तुम्हारे पांव दर्द करते हैं अरे जो हाथ से चलते हैं उनकी तो सोचो

मुझे बड़ों से बुजुर्गों से पेश आने का सलीका आता है
मियां मुझे भी थोड़ी बहोत उर्दू आती है

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अंग्रेजी कविता , hungry childhood

    नमस्कार , एक और नयी अंग्रेजी कविता आपके दयार में रख रहा हूं आपके प्यार एवं साथ की उम्मीद है |

Hungry childhood

they don't have
one time food
for eat
they don't have
clothes for wear
they are nude
what they have future
what they will made
our country future
my country government
please think one time
for Hungry childhood

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