रविवार, 27 मई 2018

ग़ज़ल , तूफान है के सब कुछ मिटाना चाहता है

    नमस्कार ,  गजल हमेशा प्रेमिका के जुल्फों की या प्रेमिका के नखरे की बात नहीं करती | गजल कभी कभी आक्रोश का तेवर भी अपना लेती है | कई आक्रोश से भरी हुई गज़लों ने कई आंदोलनों को उनके परवान तक पहुंचाया है

     उसी तेवर की आक्रोश से भरी हुई आज मेरी एक ग़ज़ल देखें | यह ग़ज़ल मैंने 20 मई 2018 को लिखी थी | ग़ज़ल का मतला और शेर कुछ देखें के -

ग़ज़ल , तूफान है के सब कुछ मिटाना चाहता है

जुल्म की हद से गुजरना चाहता है
दीया गहरे तूफान में जलना चाहता है

कल एक परिंदे ने कहा था मुझसे
सुकून से जीना है उसे इसलिए मरना चाहता है

मुसलसल इस शहर में खौफ का मौसम है
एक सुकून का लम्हा यहां से गुजारना चाहता है

ये हालात है के खामोशी भी अब चिल्लाती है यहां
एक शख्स लोगों की जुबान पर ताले लगाना चाहता है

'तनहा' है के मिट जाने को तैयार ही नहीं
वो एक तूफान है के सब कुछ मिटाना चाहता है

      मेरी ये गजल आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्स के जिए जरूर बताइएगा | अगर अपने विचार को बयां करते वक्त मुझसे शब्दों में कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मैं तहे दिल से माफी चाहूंगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार नयी रचनाओं के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार |  

गजल , वरना एक पूरा हिंदुस्तान था मैं

नमस्कार ,  गजलें हमेशा से ही मन की खुर्चनो को , गमों को , बेदारीयों को जाहिर करने का जरिया रही हैं | मेरी एक और नई ग़ज़ल का लुफ्त उठाने की कोशिश करें |

    इस ग़ज़ल की भूमिका में सिर्फ इतना ही कहना चाहता हूं कि यह ग़ज़ल एकदम से कुछ नया मिल जाने की कशमकश है | ग़ज़ल का मतलब और कुछ शेर देखें के -

गजल , वरना एक पूरा हिंदुस्तान था मैं

एक खंडहर सा वीरान था मैं
एक पूरे मोहल्ले से अनजान था मैं

एक कतरे ने पहचान लिया था कभी
एक ऐसा निशान था मैं

ये तो राजनीति ने बांट दिया मुझे
वरना एक पूरा हिंदुस्तान था मैं

इश्क ने पेचीदा बना दिया है मुझे
नहीं तो पहले आसान था मैं

सियासत की तल्खी ने कतरा कतरा काटा है मुझे
पहले तो एक सुंदर गुलिस्तान था मै

'तनहा' होकर खुशगवार हूं मैं
महफिल में था तो बेजान था मैं

      मेरी ये गजल आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्स के जिए जरूर बताइएगा | अगर अपने विचार को बयां करते वक्त मुझसे शब्दों में कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मैं तहे दिल से माफी चाहूंगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार नयी रचनाओं के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार |  

बच्चे खेलना भूल गए

    नमस्कार ,  मेरी यह कविता ' बच्चे खेलना भूल गए ' मैंने आज से तकरीबन चार-पांच दिन पहले  तब लिखा , जब मैंने एक तकरीबन दो-तीन साल के बच्चे को स्मार्टफोन चलाते हुए देखा | अगर आमतौर पर देखा जाए तो यह कोई हैरत की बात नहीं है  क्योंकि अब बड़े शहरों में यह सब  आम हो गया है कि बच्चे घर के बाहर खेल कम खेलते हैं और घर के अंदर मोबाइल पर खेल ज्यादा खेलते हैं | लेकिन आज से तकरीबन अगर बिस तिस साल पहले की बात सोचे तो उस समय के बच्चे को इन सब चीजों का नाम तक नहीं पता रहा होगा | और उस समय के बच्चे घर के बाहर खेला करते थे जिससे उनका शारीरिक और मानसिक विकास होता था लेकिन आज के बच्चे केवल डिजिटली ही इंटेलिजेंट हो रहे हैं फिजिकली और मेंटली ग्रोथ उनकी रुक सी गई है और यह चीज उनकी पूरी जिंदगी भर के लिए नुकसान दे है |

      इन्हें कुछ ख्यालों के साथ में यह कविता आपके समक्ष रखता हूं आपके प्यार की  आशा है -

बच्चे खेलना भूल गए

बच्चे खेलना भूल गए

आम के पेड़ के नीचे
गोटिया , कितकित , टीवी , गिप्पी गेंद
खेलते खेलते गिरना पडना
और लड़ना झगड़ना भूल गए
बच्चे खेलना भूल गए

किताबों का गोदाम है
जो बसते में भरा है
जो कुछ बस्ते में नहीं है
वह कंप्यूटर में धारा है
पढ़ाई के दबाव में
सावन का झूला झूलना भूल गए
बच्चे खेलना भूल गए

कंचे और छुपन छुपाई
खो-खो और चोर सिपाही
मकर संक्रांति के त्योहारों में
कटी पतंगे लूटना भूल गए
बच्चे खेलना भूल गए

      मेरी ये कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्स के जिए जरूर बताइएगा | अगर अपने विचार को बयां करते वक्त मुझसे शब्दों में कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मैं तहे दिल से माफी चाहूंगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार नयी रचनाओं के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार |  

मासूमियत खतरे में है

     नमस्कार ,  एक बड़ी पुरानी कहावत है कि ' बच्चे भगवान का रुप होते हैं ' और देखा जाए तो यह कहावत सही भी है | बचपन के दिन एक इंसान की जिंदगी के सबसे सुनहरे दिन होते हैं जो उसे दुनियादारी की सारी तकलीफों को जाने बिना सुकून से कुछ वर्ष गुजारने का मौका देता है | लेकिन आज हमारे समय में जमाने की दौड़ ने , कामयाबी पाने की कोशिश में मासूम बच्चों से वही सुनहरे दिन छीन लिए हैं | और उनके कंधों पर किताबों का बोझ डाल दिया है जोकी धीरे-धीरे उनके बचपन को निगलता जा रहा है और यही कमी उन्हें शारीरिक और मानसिक रुप से कमजोर बना रही है |

  ' मासूमियत खतरे में है ' मेरी इस कविता में मैंने उन्हीं पहलुओं को दर्शाया है जो आज की सच्चाई को उजागर करती है | मेरी यह कविता तकरीबन तीन चार दिन पुरानी है जिसे मैं इस ब्लॉग पर आपके साथ साझा कर रहा हूं | मुझे यकीन है आप भी मेरे विचारों से इत्तेफाक रखते होंगे -

मासूमियत खतरे में है

मासूमियत खतरे में है

किताबों के बोझ तले
बचपन अब कंप्यूटर में जल्दी
होमवर्क का दबाव में
जैसे साइकिल हो ढलाव में
जमाने के साथ कदम से कदम मिलाकर चलना
मतलब पेड़ का समय से पहले फलना
एक नया नया चेहरा के अंधेरे में है
मासूमियत खतरे में है

      मेरी ये कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्स के जिए जरूर बताइएगा | अगर अपने विचार को बयां करते वक्त मुझसे शब्दों में कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मैं तहे दिल से माफी चाहूंगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार नयी रचनाओं के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार |  

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