सोमवार, 14 मई 2018

गीतिका , हे भगवान प्रेम को हवा बना दो

      नमस्कार ,  गीतिका हिंदी साहित्य की एक और छोटी विधा का नाम होता है | गीतिका गजल के कुलगोत्र की विधा है | आमतौर पर गीतिका विधा भी गजल विधा की तरह ही शीर्षक बिहीन होती है |

       मेरा परिचय भी गीतिका विधा से हाल ही में ही हुआ है | आजकल में मैंने इस विधा में एक रचना की है | मैं अपनी लिखी इस गीतिका को आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूं | आप से मेरे उत्साहवर्धन की कामना करता हूं -

गीतिका , हे भगवान प्रेम को हवा बना दो

आगे के दिन भी बिताएंगे
वैसे ही जैसे बीते अभी तक

मेरे प्रेम की आवाज गूंजती है
जमीन से लेकर आसमान तक

जब तक तुम्हारे मेरे मिलने की आशा है
यह दिल भी काबू में है तभी तक

हे भगवान प्रेम को हवा बना दो
जो एक साथ पहुंचे सभी तक

एक एक करके सभी दोषी पकड़े गए
हमने सोचा था प्रेम का यह दोष सीमित है   हम्ही तक

प्रेम का दामन क्रोध के साए से सुंदर है
'हरि' में जिंदगी बाकी है प्रेम है जभी तक

       मेरी यह गीतिका आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्स के जिए जरूर बताइएगा | अगर अपने विचार को बयां करते वक्त मुझसे शब्दों में कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मैं तहे दिल से माफी चाहूंगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार नयी रचनाओं के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार |   

गाना , इश्क़ का नशा फिर दोबारा हुआ

    नमस्कार ,  गाना हिंदी साहित्य की कुछ सबसे प्रचलित एवं प्रसिद्ध विधाओं में से एक है | भारतीय हिंदी सिनेमा के गानों की फेहरिस्त बहुत ही लंबी है | अमूमन हम सब रोजाना एक, दो गाने तो सुन ही लेते होंगे | गाने के बोल में मुख्यतः दो भाग होते हैं अंतरा एवं बंद , गाने के बंद अक्सर छंदमुक्त होते हैं |

गाना , इश्क़ का नशा फिर दोबारा हुआ

    मैंने भी कुछ दिनों पहले एक गाना लिखा है | अक्सर ये कहा जाता है कि प्यार दोबारा नहीं होता ,  तो मेरे इस गाने में दूसरी बार प्रेम के हो जाने का जिक्र है | जिन्हें भी किसी से प्यार है वह इस गाने को गुनगुना सकते हैं | गाना आपके सामने प्रस्तुत है -

बीच समंदर में एक किनारा हुआ
इश्क का नशा फिर दोबारा हुआ
बीच समंदर में एक किनारा हुआ
इश्क का नशा फिर दोबारा हुआ

मैंने तो सोचा था
ताश के पत्तों के जैसे
बिखर जाऊंगी मैं
मगर पता नहीं था मुझे
तुमसे मिलकर सबर जाऊंगी मैं
एक आंसू ख़ुशी का फिर से
हमारा हुआ
इश्क का नशा फिर दोबारा हुआ

तुम जबसे मुझसे मिले हो
मैं भी थोड़ा-थोड़ा जीने लगा हूं
मैं भी जख्मों को अपने सीने लगा हूं
कभी मत छुड़ाना मुझसे दामन
तेरे सहारे की जरूरत है मुझको
जिसे देखना चाहूं ताऊ उम्र में
तू मेरा वह नजारा हुआ
इश्क का नशा फिर दोबारा हुआ

ना तुम्हारा हुआ ना हमारा हुआ
चांद जैसा कोई ना सितारा हुआ
बीच समंदर में एक किनारा हुआ
इश्क का नशा फिर दोबारा हुआ
इश्क का नशा फिर दोबारा हुआ

   मेरा ये गाना आपको कैसा लगा मुझे अपने कमेंट्स के जिए जरूर बताइएगा | अगर अपने विचार को बयां करते वक्त मुझसे शब्दों में कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मैं तहे दिल से माफी चाहूंगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार नयी रचनाओं के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार |   

प्रेम की कृण्डलियां

नमस्कार ,   कृण्डलियां छंद छंदबद्ध हिन्दी कविता का एक प्रकार है | यह छंद तीन छंदों का एक मिश्रण छंद है | जिसमें रोला एवं दोहा छंद सम्मिलित है | कृण्डलियां छंद की आखिरी दो पंक्तियां दोहा छंद की होती हैं |

आजकल मैं ही मैंने भी कुछ कृण्डलियां छंद की रचना की है | इन छंदों को मैं आज आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूं | अगर मेरी लेखनी से कुछ अच्छा हो गया हो तो मैं आपके आशीर्वाद की कामना करता हूं -

प्रेम की कृण्डलियां

प्रेम की कृण्डलियां

                           (1)

एक मोहिनी रूप , देखा मैंने आज
हो गया मुझे उससे प्रेम , यह है मेरा राज
यह है मेरा राज , जिसे कोई ना जाने
ना मैं उसे ना वो हमें , दोनों हैं एक दूजे से अनजाने
एक तरफ है मीत , एक मीत गीत
बिना शर्त निभाते रहें , यही प्रेम की रीत

                            (2)

किस नदी में धार है , किस नाव में पतवार
किस नजर में तकरार है , किस दिल में प्यार
किस दिल में प्यार है , किस दिल में नहीं
प्यार के इस जंग में , कौन है सही
कहत हरि कविराय , एक डोर है प्यार में
टूटती है विश्वास की डोर , सक या तकरार में

                            (3)

भले रोज ना हो मिलना मिलाना , मगर   मुलाकात तो हो
हर वक्त ना हो भले मगर , कभी कभी प्यार की बात तो हो
कभी कभी प्यार की बात तो हो , ये जरूरी है
अगर प्यार है किसी से , कहना बहुत जरूरी है
कहत हरि कविराय , दिल ही दिल में मत छुपाओ
अगर प्यार है तुम्हें भी तो , मोहन प्यारे उसे जताओ
.
  मेरीे यह कृण्डलियां छंद आप को कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्र के जरिये जरूर बताइएगा | अगर मेरे विचारों को लिखते वक्त मुझसे  शब्दों में कोई त्रुटि हो गई हो तो मैं उसके लिए बेहद क्षमा प्रार्थी हूं | नमस्कार |

तीन क्षणिकाएं

     तनमस्कार , क्षणिकाएं हिंदी साहित्य पद्य विधा की ऐसी छोटी रचनाएं हैं जिनका शीर्षक नहीं होता | तथा यह मूलतः छंदमुक्त भी होती हैं | क्षणिकाएं छोटी एवं कम शब्दों में बड़ी बात कहने की एक विधा का नाम है | छड़ी गांव का विषय मुख्यतः वर्तमान परिस्थिति पर आधारित होता है |

     वर्तमान परिस्थितियों को मध्य नजर रखते हुए मैंने भी आजकल में कुछ क्षणिकाएं लिखी है | जिन्हें मैं आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूं -

हाय , हाय रे गर्मी

हाय , हाय रे गर्मी

1) सूरज चाचा
के पास भी
कहां होगी
इतनी गर्मी
जितनी है
आजकल चुनाव
कि गर्मी

2)  क्या कहूं
क्या बताऊं
लोग अस्त व्यस्त हैं
और हैरान है
दिन के तापमान से
लगता है के
आग बरस रही है
आसमान से

3)  थोड़ा तो दिखाओ
तेवर में नरमी
हाय रे गर्मी
हाय , हाय रे गर्मी

      मेरी ये क्षणिकाएं आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्स के जिए जरूर बताइएगा | अगर अपने विचार को बयां करते वक्त मुझसे शब्दों में कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मैं तहे दिल से माफी चाहूंगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार नयी रचनाओं के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार |   

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