गुरुवार, 11 नवंबर 2021

ग़ज़ल , मुस्कान पर दिल दिया आह में मर गए

      नमस्कार , करीब दो से तीन माह पूर्व मैने ये नयी ग़ज़ल लिखी थी जिसे मैं एक किताब में संग्रह के रुप में लाना चाहता था मगर किसी कारण से यह संभव नहीं हो पा रहा है इसलिए मैने सोचा की मै इसे आपके साथ साझा कर दूं | ग़ज़ल कैसी रही मुझे अपने विचारों से अवगत अवश्य कराए |


मुस्कान पर दिल दिया आह  में मर गए 

कुछ उसकी राह में कुछ चाह में मर गए 


खौफ़नाक हादसे यू भी हो सकते हैं 

तारीफ़ पर फना हुए वाह में मर गए 


तमाम जुर्म करके बरी हो जाता है जमाना 

हम  एक  मोहब्बत के गुनाह  में मर  गए 


पहले झूठ फिर गैर से रिश्ता अब ये सुलूक 

आज से   तुम  मेरी   निगाह में   मर  गए 


इलाज बनकर वो फिर आए भी तो क्या 

कुछ नसीब के मारे तो कराह में मर गए 


कातिल से तो तुम बच निकले तनहा 

हम तो  अपनों  की पनाह में मर गए 


     मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


बुधवार, 6 अक्तूबर 2021

ग़ज़ल , मै ये बात कभी नहीं बताता उसको

     नमस्कार , आज कि रात मैने ये ग़ज़ल लिखी थी जिसे मैं आज सुबह आपके साथ साझा कर रहा हूं ग़ज़ल कैसी रही मुझे जरूर बताइएगा 


मैं ये बात कभी नहीं बताता उनको 

मुहब्बत में लड़ने का हुनर नही आता उनको 


कहां कहां भटका हूं पानी की तलाश में 

वो मेरी प्यास समझते तो बताता उनको 


कितने जख्म दिए हैं उनकी बेरुखी ने 

दिल कोई चीज होती तो दिखाता उनको 


या खुदा उन्हें कोई तो गम दे रोने को 

मेरी चाहत वो मेरे कंधे पे रोते तो हंसाता उनको 


वो आज आसमान में बादल है नही तो 

चांद को उँगलीयों से छुके दिखाता उनको 


मलाल ये के असल में वो तो वो कोई हैं ही नहीं 

जब भी हम तनहा होते सताता उनको 


     मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


गुरुवार, 9 सितंबर 2021

कविता , रोज ढलता है सूरज और मेरी एक प्याली चाय

      नमस्कार , लगभग महीने भर पहले मैने ये कविता लिखी थी जिसे मैं किसी व्यस्तत्ता के कारण आपसे साझा नही कर पाया था आज कर रहा हूं मुझे यकीन है कि आपको यह कविता पसंद आएगी 

रोज ढलता है सूरज और मेरी एक प्याली चाय 


विश्वास ही नहीं होता मुझको 

आप को भी नही होता ना 

किसी को भी नहीं होता होगा 

आखिर किसी को हो भी कैसे सकता है 


कि कोई सूरज नाम का चीज है 

जो रोज सुबह जन्म ले लेता है 

और कुछ घंटे जीवित रहता है 

फिर मृत्यु को हो जाता है 


और फिर अगली सुबह जीवन पाता है 

यानी ना तो ये पुर्णत: अमर है 

और ना ही नश्वर 

इसे किसने इस काल चक्र में फंसाया है 

किसी मनुष्य ने यक्ष ने गंधर्व ने या के ईश्वर 

       मेरी ये कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


कविता , एक महल और मैं

      नमस्कार , लगभग हफ्ता भर पहले मैने ये कविता लिखी थी जिसे मैं किसी व्यस्तत्ता के कारण आपसे साझा नही कर पाया था आज कर रहा हूं मुझे यकीन है कि आपको यह कविता पसंद आएगी 

एक महल और मैं 


एक महल की छायाचित्र देखकर 

स्वयं को उस महल में कल्पना करने लगा 

वो सोने के आभूषण वो नौकर चाकर 

वो महंगें वस्त्र वो आलीशान विस्तर 

बहुत सी लंबी लंबी गाड़ीयां 

वो हवाई जहाजों पर सवारीयां 

कितने होंगे स्वादिष्ट पकवान 

तभी एकाएक वापस लौट आया ध्यान 

आज घर में सब्जी क्या बनी है 

      मेरी ये कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


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