बुधवार, 31 मार्च 2021

ग़ज़ल , आंख नम है इसलिए चुरा रहा हूं मैं

      नमस्कार , मैने पिछले वर्ष इस ग़ज़ल को लिखा था लिखने के बाद तमाम अखबारों में पत्रिकाओं में छपने के लिए भेजकर नाकाम होने के बाद आखिरकार मैने निर्णय लिया के इसे आपके साथ साझा किया जाए तो ये रही अब आप पढ़े एवं मुझे अवगत करवाएं की कैसी रही |

आंख नम है  इसलिए  चुरा  रहा हूं मैं 

ये  बात  नही है के  शर्मा   रहा  हूं  मैं 


मुसलसल कई दिनों से उन्हें एक गुलाब देता हूं 

पत्थर  पर   लकीर  बना  रहा  हूं  मैं 


कांच के टूटे तोहफ़े को फिर तोड़ रहा हूं 

अपने जख्मों पर नमक लगा रहा हूं मैं 


मैने सोचा था उनके दिल को मोहब्बत से भर दूंगा

सदा के लिए ये चिराग बुझा रहा हूं मैं 


शक के दायरे में मेरा आना लाज़मी ही नहीं 

कोई बात ही नहीं जिसे छुपा रहा हूं मैं 


तनहा होना बड़ा सुकून देता है दिल को 

ये बात अपने तजुरबे से बता रहा हूं मैं 

    मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


गुरुवार, 25 मार्च 2021

ग़ज़ल , न बहुत ज़्यादा न बहुत कम देखते हैं

       नमस्कार , एक मशहूर शायर की ग़ज़ल की बहर पर मेरी ये ग़ज़ल देखें अगर आप को अच्छी लगे तो मुझे अपने विचारों से अवश्य अवगत करवाएं |

न बहुत ज़्यादा न बहुत कम देखते हैं 

उन्हें बार-बार  बस  हम  देखते  हैं 


हासिल  क्या  होता है  मोहब्बत  में 

हम भी एकबार खाकर कसम देखते हैं 


मुझे तड़पता देखकर कोई यकीन नही करता 

अब दर्द देखने से पहले लोग जख्म देखते हैं 


क्या वजह थी मौत की किसी को क्या मतलब 

लाश देखने से पहले लोग कफन देखते हैं 


कब तक आग के मानिंद जलता रहूंगा मैं 

तनहा आओ मोहब्बत में सितम देखते हैं 

     मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |

रविवार, 21 मार्च 2021

कविता , दिनकर है मेरी कविता

      नमस्कार 🙏 मैने यह कविता साप्ताहिक काव्य प्रतियोगिता हिन्दी काव्य कोश के विषय - दिनकर के लिए विधा - कविता में दिनांक - 19/03/2021 को भेजी थी रचना तो विजयी नही हुई पर मैने ये सोचा के क्यों न आपके साथ भी इसे साझा किया जाए तो पेश कर रहा हूँ पढ़ कर विचार जरूर बताइएगा 

दिनकर है मेरी कविता


दिनकर है कर्तव्यपरायण 

दिनकर है उपकारी 

दिनकर के गुणगान करों 

दिनकर है सदाचारी 


दिनकर का उपकार दिन है 

दिनकर का आभार भी 

दिनकर का व्यवहार काव्य है 

दिनकर का विचार भी 


दिनकर को एक समान लगे 

दानी , धनी और दीन 

दिनकर सब का अपना है 

बलवान , अबला हो या हीन 


दिनकर मंगल वंदन में 

दिनकर स्वागत अभिनंदन में 

दिनकर सूक्ष्म विसाल सब है 

दिनकर ही भारत लंदन में 


दिनकर हर विधा में है 

दिनकर है अविधा में भी 

दिनकर मेरे शब्द-शब्द में 

दिनकर है मेरी कविता में भी 

      मेरी ये कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |

रविवार, 14 मार्च 2021

ग़ज़ल , हिसाब मागुंगा मै

       नमस्कार 🙏 मैने इस ग़ज़ल को करीब एक साल पहले लिखा था और लिखकर कॉपी बंद करके रख दिया था पिछले हफ्ते में मैने इसे टाइप करके एक अखबार में प्रकाशित होने के लिए भेजा था मगर अखबार ने इसे प्रकाशित नही किया तो मैने कहा के साहब ये यहां वहा प्रकाशित करवाने का झंझट खत्म करते हैं और दोस्तों के साथ साझा करते हैं तो लीजिए और पढ़ कर बताइए के कैसी रही |


कुछ आंशु , कुछ जज़्बात , कुछ ख्वाब मागुंगा मैं 

आज उससे तोहफ़े में कुछ और मुलाकात मागुंगा मैं


ज़िन्दगी   तू   पाई पाई   याद  रखना  मेरा 

किसी दिन फुर्सत में बैठकर हिसाब मागुंगा मैं 


आखिर  मेरे  कत्ल  की  वजह  क्या  थी 

खुदा से इस सवाल का जबाब मागुंगा मैं


जिसे दुनियां का हर एक शख्स पढ़ सके 

खुदा  से  ऐसी  कई  किताब  मागुंगा  मैं


रात के मानिंद तिरगी है आजकल दिन में

सूरज से  कतरा भर आबताब  मागुंगा  मैं 


कुछ और बेशकीमती असार कह सके तनहा 

खुदा  से  कुछ  और  अल्फाज  मागुंगा  मैं 


      मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


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