नमस्कार , मैने एक नयी ग़ज़ल लिखी है जिसे मै आपके सम्मुख रख रहा हूँ मेरी ये नयी ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे जरुर बताइएगा |
इंसानों कों पहचानने में कच्ची हैं तेरी आंखें
तीन साल की मासूम बच्ची हैं तेरी आंखें
कोई बनावटी अंदाज नही उतरता इनमें
तुझसे तो सौ गुना अच्छी हैं तेरी आंखें
खुदा की कसम कितनी बडी़ झुठी है तू
कसम से यार कितनी सच्ची हैं तेरी आंखें
तमाम झुठ तमाम सच फिर भी हैं मासूम
तू तो होगई जवान मगर बच्ची हैं तेरी आंखें
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इस ग़ज़ल को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |