शनिवार, 30 नवंबर 2019

ग़ज़ल, देख रहा हुं मै

     नमस्कार , ये नयी गजल बिना किसी तमहिद भुमिका के आपके रुबरु रखना चाहुंगा

दुनिया भर का जुल्म अपने अंदर देख रहा हुं मै
खुन कि दरिया खुन का समंदर देख रहा हुं मै

क्या बताउ तुम्हे मैने सब भर ख्वाब में क्या देखा
अपने ही मौत का मंजर देख रहा हुं मै

क्यों ना रोऊ बारुद कि खेती सुनकर
सारी कि सारी धरती बंजर देख रहा हुं मै

अब भी वक्त है इंसानो रुख जाओ
हिलती हुई जमीन हवाओ में बवंडर देख रहा हुं मै

क्या कहुं कि खुदा गुनाह माफ करदे मेरे
तनहा कयामत का मंजर देख रहा हुं मै

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ग़ज़ल, तुम मानोगे नही

    नमस्कार , ये नयी गजल बिना किसी तमहिद भुमिका के आपके रुबरु रखना चाहुंगा

आज सुबह कि बात है तुम मानोगे नही
मुझे लगा कि रात है तुम मानोगे नही

वो हाथ उठाता है अपनी शरिक ए हयात पर
यकिनन जानवर कि जात है तुम मानोगे नही

क्यो देता है वो मुझे पीठ पिझे गालियां
यही उसकी असल औकात है तुम मानोगे नही

मोहरे हैं वक्त नसीब हालात और मुश्तकबील
हयात खुदा कि बिछाई विसात है तुम मानोगे नही

दुश्मनों ने जश्न मनाया है तनहा मेरी हार का
ये मेरी फेंकी हुई खैरात है तुम मानोगे नही

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ग़ज़ल, वो भी मुझसे मोहब्बत करती थी ना

      नमस्कार , ये नयी गजल बिना किसी तमहिद भुमिका के आपके रुबरु रखना चाहुंगा

अपने अॉशुओ से मेरे जख्मों कि हिफाजत करती थी ना
वो भी मुझसे मोहब्बत करती थी ना

कभी रोजा रखती थी कभी मन्नते मांगती थी
वो कितनी रवायत करती थी ना

कम से कम घर में सन्नाटा तो नही पसरा रहता था
वो तो कितनी शिकायत करती थी ना

ख्यालात मुक्तलिफ नही होते थे हमारे
फिर भी वो मेरी खिलाफत करती थी ना

हयात कि वो खुशीयॉ उसके साथ ही चली गई तनहा
वो तो फरमाइसें करके मेरी आफत करती थी ना

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ग़ज़ल, आदाब बदल लेते है

      नमस्कार , ये नयी गजल बिना किसी तमहिद भुमिका के आपके रुबरु रखना चाहुंगा

तर्को ताल्लुक अदबो आदाब बदल लेते हैं
लोग चेहरा देखकर हिजाब बदल लेते हैं

नफे नुक्शान का ऐसा गणित पढती है दुनिया
फायदे के लिए सच कि किताब बदल लेते है

मोहब्बत करने जा रहे हो तो याद रखना
मोहब्बत में नजरों से सारा हिसाब बदल लेते है

तनहा उस मोड की उस गली से मत जाना
इशारों इशारों से दिल जनाब बदल लेते है

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