शनिवार, 30 नवंबर 2019

ग़ज़ल, वो भी मुझसे मोहब्बत करती थी ना

      नमस्कार , ये नयी गजल बिना किसी तमहिद भुमिका के आपके रुबरु रखना चाहुंगा

अपने अॉशुओ से मेरे जख्मों कि हिफाजत करती थी ना
वो भी मुझसे मोहब्बत करती थी ना

कभी रोजा रखती थी कभी मन्नते मांगती थी
वो कितनी रवायत करती थी ना

कम से कम घर में सन्नाटा तो नही पसरा रहता था
वो तो कितनी शिकायत करती थी ना

ख्यालात मुक्तलिफ नही होते थे हमारे
फिर भी वो मेरी खिलाफत करती थी ना

हयात कि वो खुशीयॉ उसके साथ ही चली गई तनहा
वो तो फरमाइसें करके मेरी आफत करती थी ना

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ग़ज़ल, आदाब बदल लेते है

      नमस्कार , ये नयी गजल बिना किसी तमहिद भुमिका के आपके रुबरु रखना चाहुंगा

तर्को ताल्लुक अदबो आदाब बदल लेते हैं
लोग चेहरा देखकर हिजाब बदल लेते हैं

नफे नुक्शान का ऐसा गणित पढती है दुनिया
फायदे के लिए सच कि किताब बदल लेते है

मोहब्बत करने जा रहे हो तो याद रखना
मोहब्बत में नजरों से सारा हिसाब बदल लेते है

तनहा उस मोड की उस गली से मत जाना
इशारों इशारों से दिल जनाब बदल लेते है

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ग़ज़ल, क्या बात कर रहा है यार

      नमस्कार , ये नयी गजल बिना किसी तमहिद भुमिका के आपके रुबरु रखना चाहुंगा

उसे मेरा इंतजार है क्या बात कर रहा है
उब भी मुझसे प्यार है क्या बात कर रहा है

जो शख्स जुवान तो जुवान अॉख तक से झुठ बोलता है
तुझे उसकी बात का ऐतबार है क्या बात कर रहा है

आवारा तितलीयों को आदत होती है फूल बदलते रहने की
मेरा तो है उसका भी पहली बार है क्या बात कर रहा है

ये तो दिल टुटने का बस दिखावा है फेसबुक पर
असल में नए आशिकों को इस्तेहार है क्या बात कर रहा है

माना तनहा थोडा बहोत नासमझ है मगर इतना भी नही
उसने कहा है मेरा उसके दिल पर इक्तेयार है क्या बात कर रहा है

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ग़ज़ल, थोडा सा पानी है

      नमस्कार , ये नयी गजल बिना किसी तमहिद भुमिका के आपके रुबरु रखना चाहुंगा

जिंदगी कि जरा सी निशानी है
उस गड्ढे में थोडा सा पानी है

यही दो गज जमीन है सल्तनत मेरी
यही कब्र मेरी राजधानी है

निजाम ने कहा है तारीफ करो या चुप रहो
बोलना हुक्म की नाफरमानी है

दर्द ने टटोल कर तप्सिल किया है
मेरा अॉशु , अॉशु है या पानी है

अजीब सबाल पुछा है मुंशफ ने चोर से
क्या चोरी का हुनर खानदानी है

दुश्मनी नयी नयी है मेरी तनहा उनसे
वरना दोस्ती तो बहोत पुरानी है

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