रविवार, 13 अक्तूबर 2019

ग़ज़ल, दिललगी बारी बारी करो

     नमस्कार , यहा मै अपनी नयी गजल आपकी जानीब में रख रहा हुं मेरी दिली तमन्ना है कि मेरी ये नयी गजल आपको बेहद पसंद आएगी

दिललगी सब से बारी बारी करो
पहले जमी फिर आस्मा से यारी करो

ये जमीन जहरिली हो चूकी है
यहां से कहीं और बसने कि तैयारी करो

हवाओ से बाते करना पुराना हो चुका है
इस दौर में तुफानों पर सवारी करो

आस्मा जहर का धुआ बन गया है
सांसे चाहिए तो सजरकारी करो

घरवालों की यही नसीहत रहती है
नौकरी करो तो सरकारी करी

कोई गुलबदन महताब महजबी दिल चुरा नले
अपने सामान की पहरेदारी करों

मसला ये नही की कौन मोहतरम है
फैसले में सब कि रायशुमारी करो

अपने जिस्म के वास्ते सच बोलो
अपनी रुह से वफादारी करो

वस्ल का मंजर हसीन होता है तनहा
मोहब्बत में पहले हीजरत की तैयारी करो

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ग़ज़ल, किरदार कहानी से अच्छा है

     नमस्कार , यहा मै अपनी नयी गजल आपकी जानीब में रख रहा हुं मेरी दिली तमन्ना है कि मेरी ये नयी गजल आपको बेहद पसंद आएगी

बुढापा जवानी से अच्छा है
यानि किरदार कहानी से अच्छा है

उसका हुक्म है मोहब्बत करो
तामिल नाफरमानी से अच्छा है

मेरी जमाने को यही नसिहत है
संघर्ष चाय पानी से अच्छा है

स्वाद तो जहर का आता है
अब आंशु पानी से अच्छा है

ये सलिका नही तरिका है
सजदा बद्गुमानी से अच्छा है

पौधो को सर्दी नही धुप बढाती है
मुस्कील आसानी से अच्छा है

खानाबदोसी नए जायके ले आई
दाल चावल बिरयानी से अच्छा है

गुफ्तगू तप्सील से सुनी सबने
कहने का सार , सानी से अच्छा है

साफ आबो हवा मयस्सर है यहां
तनहा गांव राजधानी से अच्छा है

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शुक्रवार, 11 अक्तूबर 2019

ग़ज़ल, वही शख्स पुराना लगता है

     नमस्कार , यहा मै अपनी आज ही के दिन  कही गई मेरी नयी गजल आपकी जानीब में रख रहा हुं मेरी दिली तमन्ना है कि मेरी ये नयी गजल आपको बेहद पसंद आएगी

चेहरा जाना पहचाना लगता है
वही शख्स पुराना लगता है

कोई लकल्लुफ नही रहा गुफ्तगू मे
ताल्लुकात बहुत पुराना लगता है

हमकलाम हुए है हम कई दफा सुरज से
हमारा महताब पर आना जाना लगता है

वही चेहरा दिखाता है हरके शख्स मे
ये आईना शायद पुराना लगता है

आग लगाने मे चार पल भी नही लगते
एक घर बनाने मे जमाना लगता है

मेरे शहर मे लोग बारुद कि खेती करते है
तुम्हारे गांव का मौसम सुहाना लगता है

आस्मा है चादर और बिस्तर है जमी मेरी
ये चांद तो मेरे सिर का सिरहाना लगता है

हर फूल पर डालता रहता है डोरे
भवंरे का मिजाज आशिकाना लगता है

तुम कहते हो ये सियासत खाना है
मुझे ये चोर अचक्को का ठीकाना लगता है

तुम्हे क्या लगता है कौन रहता है यहां
दिल मेरा हक उसका मालिकाना लगता है

इलाज नही मौत मिलती है यहां से
बाहर से देखकर ये दवा खाना लगता है

तनहा कई और दिल के बिमार बैठे है
यकिनन यही वो शराबखाना लगता है

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गुरुवार, 10 अक्तूबर 2019

ग़ज़ल, शक होता है

     नमस्कार , इस पोस्ट के माध्यम से मैं यहा अपनी हाल ही के दो चार दिनों में कही गई मेरी नयी गजल आपकी जानीब में रख रहा हुं मेरा दिली अकिदा है कि मेरी ये नयी गजल आपको बेहद पसंद आएगी

मूहं लाल ना हो तो पान पे शक होता है
हर वक्त फिसलने वाली जुबान पे शक होता है

दिल में सुई चुभती है किसी कि बेरुखी पर
मेरी जान अपनी जान पे शक होता है

कैसी मोहब्बत है तेरी बोलकर इजहार भी नही कर सकता
गर ये है तेरा इमान तो तेरे इमान पे शक होता है

ये कैसा अंजाम हुआ जो कातिल के हक मे गया
मुझे तो तेरी बताई दास्तान पे शक होता है

हमारे कुनवे हमारे अहद कि जहनीयत ही यही है
बेटा गर आवारा हो तो पुरे खानदान पे शक होता है

आदमखोर हों या हैवान सब इसी बस्ती से निकलते हैं
मै जिसे भी देखता हुं यहा हर इंसान पे शक होता है

कितने फर्जी रहनुमा घुम रहे है यहा खुदा बनकर
खुदा मुझे तो अब तेरी असल पहचान पे शक होता है

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