रविवार, 6 मई 2018

मुझे दिल का मरीज समझ लेने वालों

    नमस्कार , अभी हाल ही में तकरीबन 1 महीने पहले मैंने एक ग़ज़ल लिखी है उसे मैं आप के सामने प्रस्तुत कर रहा हूं -

मुझे दिल का मरीज समझ लेने वालों

बस खेलने की चीज़ समझ लेने वालों
मुझे दिल का मरीज समझ लेने वालों

बस एक दफा आफत से टकराकर टूट जाते हो
शिकस्त को नसीब समझ लेने वालों

अक्सर शख्सियत से काबिलियत का अंदाजा नहीं होता
हर एक चीज को नाचीज समझ लेने वालों

कभी ये बेफिजूली भी आजमा कर देखो
मोहब्बत को बुरी चीज़ समझ लेने वालों

एक बार जो समझ जाओगे तो फिर भुला ना पाओगे
सिर्फ चेहरे से अजीब समझ लेने वालों

किसी हसीना को समझ जाओगे तो समझदार मान लेगा 'हरि'
सुना है हर चीज समझ लेने वालों

    मेरी यह गजल आप को कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्र के जरिये जरूर बताइएगा |
अगर मेरे विचारों को लिखते वक्त मुझसे  शब्दों में कोई त्रुटि हो गई हो तो मैं उसके लिए बेहद क्षमा प्रार्थी हूं | नमस्कार |

शादियों का दौर है

  शादियों का दौर है मेरी यह हास्य व्यंग कविता शादी के बाद पति पत्नी के खट्टे-मीठे रिश्ते पर  आधारित है | शादी इंसानी जिंदगी का वह रिश्ता है जो जिंदगी को मुकम्मल बनाता है | इस रिश्ते में पति पत्नी के दरमियां हजारों अनबन हजारों , तीखी मीठी नोकझोंक होती रहती हैं | 

शादियों का दौर है

          शादी से पहले और शादी के बाद के विरोधाभास को मैंने अपने कविता में व्यंगात्मक रुप से प्रदर्शित किया है  और उसे हास्य का रूप देने की कोशिश की है | मुझे उम्मीद है मेरी यह कविता आपका मनोरंजन करेगी -
शादियों का दौर है
शादियों का दौर है
आबादियों का दौर है
या बर्बादियों का दौर है
उलझने सिर्फ इतनी नहीं
सवाल अभी और हैं
शादियों का दौर है

शादी के दिन दोस्त  नचाते हैं
फिर जिंदगी भर पत्नी नचाती है
शादी की रात भर सब ढोल बजाते हैं
फिर पत्नी सारी उमर बैंड बजआती है
शादी के दिन और रात राजा जैसे खातिरदारी मिलती है
और सारी जिंदगी गुलाम जैसी हालत रहती है
शादी तो खुशियों का जाना है
और दुखों का घर आना है
गलत समझ रहे हैं आप
मेरे कहने का मतलब कुछ और है
शादियों का दौर है

शादी से पहले पढ़ाई में
गणित को समझना मुश्किल होता है
शादी के बाद जिंदगी में
पत्नी को समझना नामुमकिन होता है
पत्नी अगर बोलती रहे
तो खतरा होती है
पत्नी अगर ना बोले
तो खतरनाक होती है
दूर के ढोल सुहावने लगते हैं
यह कहावत सबसे ज्यादा शादी पर लागू होती है
बस इतनी नहीं शादी की तारीफ अभी और है
शादियों का दौर है

     मेरी यह हास्य व्यंग कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्स के जरिए जरूर बताइएगा, कृपया ब्लागस्पाट के कमेंट बॉक्स में सार्वजनिक कमेंट ऐड करिएगा | अगर अपने  विचार को बयां  करते वक्त मुझसे शब्दों में कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मैं तहे दिल से माफी चाहूंगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार |

शनिवार, 17 मार्च 2018

मुक्तक , मोहब्बत में दीवाना हूं

   आज मै आप के सामने मेरी कुछ दिनों पहले लिखी श्रृंगार रस की चार लाइनों की कुछ कवितएं रख रहा हूँ | इन कविताओं को मुक्तक भी कहा जाता है | आशा है के आप इन्हें सराहें

मुक्तक , मोहब्बत में दीवाना हूं

                            (1)
न समझो तो फसाना हूं
न मानो तो बहाना हूं
क्याे मानति नही हो जब जनती हो सब
मोहब्बत में दीवाना हूं  मोहब्बत का दीवाना हूं

                           (2)
दिल में दर्द है जितना
रगों में मर्ज है जितना
मै तुम्हारे प्यार कि बातो में ऐसे खोगया हूं कि
समंदर में जितना पानी हिमालय सर्द है जितना

                            (3)
न समझो तो होती है कहनी में गलतफहमी
उलझन हो तो होती है आसानी में गलतफहमी
उन्हें तुमसे प्यार है या दोस्ती कभी पूछ कर देखो
क्योंकि अक्सर ही होती है जवानी में गलतफहमी

    मेरे यह मुक्तक आप को कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्र के जरिये जरूर बताइएगा |
अगर मेरे विचारों को लिखते वक्त मुझसे  शब्दों में कोई त्रुटि हो गई हो तो मैं उसके लिए बेहद क्षमा प्रार्थी हूं |  नमस्कार |

बुधवार, 14 मार्च 2018

इस नदी कि धार को कोई किनारा दीजिए

   बदलाव का स्वर हर बार अपने साथ कुछ चुनौतियां लाता है |  चाहे किसी भी परिस्थिति का बदलाव करना हो या किसी वस्तु का बदलाव हमेशा कुछ ना कुछ नयापन उजागर करता है |  एक निश्चित समय अवधि के बाद हर पुरानी हो चुकी चीज में बदलाव की जरूरत होती है | चाहे वह घोटालों पर घोटाले करती सरकार हो या फिर अंधविश्वास , छुआछूत ,  बेटियों के प्रति हीन भावना आदी |

इस नदी कि धार को कोई किनारा दीजिए

   बदलाव के स्वर को उजागर करती हुई  मेरी एक ग़ज़ल है  जिसे मैं आप लोगों के सामने प्रस्तुत कर रहा हूं |  आशा है कि यह ग़ज़ल आप लोगों को पसंद आए

इस नदी की धार को कोई किनारा दीजिए
हर नए बदलाव में साथ हमारा दीजिए

दुनिया रंगों से भरी है बात कितनी सच्ची है
बूढ़ी आंखों को कोई सुंदर नजारा दीजिए

स्थिर खड़े साहिल को इसकी कोई जरूरत नहीं
डगमगाती नाव को अब सहारा दीजिए

कच्चा धागा ही तो था टूट गया तो क्या हुआ
दिल का तोहफा दिलरुबा को फिर दोबारा दीजिए

      मेरी यह गज़ल आप लोगों को कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्र के जरिये जरूर बताइएगा | अगर मेरे विचारों को लिखते वक्त मुझसे  शब्दों में कोई त्रुटि हो गई हो तो मैं उसके लिए बेहद क्षमा प्रार्थी हूं |  नमस्कार |

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