मंगलवार, 9 मई 2017

कभी एक IPL ऐसा भी हो , जिसका खुमार IPL जैसा ही हो

     IPL 2017 अपने पूरे शबाब पर हैअब तो यह क्रिकेट प्रेमियों के लिए किसी जुनून से कम नहीं है और इसका खुमार सिर चढ़कर बोल रहा है | 2008 से शुरू होने वाला क्रिकेट का यह T20 फॉर्मेट 2017 तक आते-आते अनेक रोमांचकारीें मैचों का जन्मदाता बन चुका है |  IPL के 10 साल के इतिहास में कई टीमों को जीत का मीठा स्वाद तो कई टीमों को हार की खटास झेलनी पड़ी हैकई टीमों खिलाड़ियों ने जीत का जश्न  मनाया है तो कई टीमों खिलाड़ियों ने हार के आंसू बहाए हैं 

कभी एक IPL ऐसा भी हो , जिसका खुमार  IPL जैसा ही हो


    

कभी एक IPL ऐसा भी हो , जिसका खुमार  IPL जैसा ही हो

   IPL के 10 साल के हर लम्हे का गवाह भारत ही नहीं पूरी दुनिया से हर क्रिकेट प्रेमी बना है | IPL के इतने लंबे क्रिकेट करियर में अभी तक  कुछ खिलाड़ियों पर फिक्सिंग के आरोप लग चुके हैं और वह खिलाड़ी इस फॉर्मेट से निकाले भी जा चुके हैं उन खिलाड़ियों से जुड़ी टीमों पर सदा के लिए प्रतिबंध भी लगाया जा चुका है , बावजूद इसके IPL की लोकप्रियता में कोई कमी आई है और क्रिकेट प्रेमियों के लिए IPL की दीवानगी में कमी आई है |

कभी एक IPL ऐसा भी हो , जिसका खुमार  IPL जैसा ही हो
       
       IPL की इसी दीवानगी को केंद्र में रखकर मैंने अपने दृष्टिकोण से एक हास्य व्यंग की कविता लिखी है | उम्मीद करता हूं कि मेरा दृष्टिकोण आप लोगों को भी अपने दृष्टिकोण जैसा ही लगे और आप लोग भी इस दृष्टिकोण से पूर्ण रूप से सहमत  हो | कविता कुछ इस तरह से है -

कभी एक IPL ऐसा भी हो
जिसका खुमार  IPL जैसा ही हो


कभी ऐसी गुगली आए
की बेरोजगारी आउट हो जाए
गरीबी LBW हो
महंगाई रन आउट हो
भ्रष्टाचार जो लगातार स्कोर कार्ड बढ़ाएं चला जा रहा है
उसका इनसे भी बुरा हाल हो जाए
जब लंबी हिट लगाए तो
बाउंड्री लाइन पर कैच आउट हो जाए
हमेशा मैच हमारा भारत ही जीते
ग्राउंड चाहे जैसा भी हो

कभी एक IPL ऐसा भी हो , जिसका खुमार  IPL जैसा ही हो

कभी एक IPL ऐसा भी हो , जिसका खुमार  IPL जैसा ही हो

कभी एक IPL ऐसा भी हो
जिसका खुमार  IPL जैसा ही हो
हम सभी हिंदुस्तानी एक टीम है
हमारी एकता अखंडता में कहीं फिक्सिंग हो
दंगों की डेड बॉल हो
भेदभाव की नोबॉल हो
लिंगभेद करने वालों पर सदा के लिए प्रतिबंध लगे
परस्पर प्यार और भाईचारे का मैच
हमेशा चलता ही रहे
दिन हो चाहे रात हो

कभी एक IPL ऐसा भी हो
जिसका खुमार  IPL जैसा ही हो

    
मेरी यह हास्य व्यंग कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्स के जरिए जरूर बताइएगा | अगर अपने  विचार को बयां  करते वक्त मुझसे शब्दों में कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए माफी चाहूंगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार |

शनिवार, 6 मई 2017

अब झाड़ू पोछा हथियार बनाएं सब स्वच्छता का पर्व मनाए

          नमस्कार , आज हमारा देश भारत तरक्की की राह में अग्रसर है | पूरी दुनिया हमारी काबिलियत का लोहा मान रही हैअंतरिक्ष विज्ञान हो , चिकित्सा विज्ञान हो या  कंप्यूटर विज्ञान हो  हम हिंदुस्तानियों ने हर क्षेत्र में अपना  अतुलनीय योगदान दिया हैहमारे भारत की कई उपलब्धियों के साथ-साथ कई समस्याएं भी हैं जैसे गरीबी , बेरोजगारी , अशिक्षा , जनसंख्या वृद्धि इत्यादि | लेकिन एक समस्या ऐसी है जिसे मुझे लगता है कि हम हिंदुस्तानियों ने खुद समस्या बनने दिया है | वह समस्या है, 'अस्वच्छता' |

 सब स्वच्छता का पर्व मनाए

अब झाड़ू पोछा हथियार बनाएं      सब स्वच्छता का पर्व मनाए

 
मैंने यहां कुछ तस्वीरें पोस्ट की हैं  | जिसमें एक जगह  वह है जो गंदा है और दूसरा जगह वह है जो साफ है , अगर आपसे पूछा जाए कि आपको दोनों जगहों में से कौन सी जगह पसंद है तो जाहिर सी बात है कि आप स्वच्छ जगह को ही पसंद करेंगे | स्वच्छता के मामले में इसी तरह की  कुछ तुलना हमारे देश के बारे में भी होती होंगी
और हमें अपने देश को सबका पसंदीदा बनाना है  | इसके लिए जरूरी है कि हम सभी देशवासी मिलकर एक साथ प्रयास करें और अपने भारत को स्वच्छ बनाएं | स्वच्छता के इसी मकसद को साकार करने के उद्देश्य से मैंने एक कविता लिखने की कोशिश की है जिसका शीर्षक है -

अब झाड़ू पोछा हथियार बनाएं
    
सब स्वच्छता का पर्व मनाए


स्वच्छता का हो बोलबाला
गंदगी का हो मुंह काला
घर-आंगन , खेत- खलीहान , गांव-शहर
जन - जन के दिल में चले लहर
अस्वच्छता को मार भगाएं
अब झाड़ू पोछा हथियार बनाएं
    
सब स्वच्छता का पर्व मनाए

अब झाड़ू पोछा हथियार बनाएं      सब स्वच्छता का पर्व मनाए
अब झाड़ू पोछा हथियार बनाएं      सब स्वच्छता का पर्व मनाए

एक प्रतिज्ञा आज करें
खुद कहीं फैलाएं गंदगी
किसी को फैलाने दे गंदगी
स्वच्छ रखें हम अपना दिल
साफ सुथरा अपना हिंदुस्तान बनाएं
अब झाड़ू पोछा हथियार बनाएं
    
सब स्वच्छता का पर्व मनाए

गंदा घर किसे है भाता
मगर यह सोचिए इसे गंदा कौन बनाता
आलस्य का अब दामन छोड़ें
हर मन में यह चेतना जगे
गांधी बापू का सपना साकार  कर दिखलाएं
अब झाड़ू पोछा हथियार बनाएं
    
सब स्वच्छता का पर्व मनाए


        मेरी यह कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्स के जरिए जरूर बताइएगा | अगर अपने  विचार को बयां  करते वक्त मुझसे शब्दों में कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए माफी चाहूंगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार |              

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