शनिवार, 4 जुलाई 2020

मुक्तक , चार चार लाइनों में बातें करुंगा आपसे 17


  नमस्कार , पिछले कुछ तिन चार हप्ते में मैने कुछ मुक्तक लिखें हैं जिन्हे मैं आपके संज्ञान में लाना चाहुंगा यदि मेरे यह मुक्तक आपको पसंद आएं तो मुझे अपने कमेन्ट्स के माध्यम से जरुर अवगत कराए

बाकी है मेरी शान अपने बुजुर्गों पर
मेरी हरेक पहचान अपने बुजुर्गों पर
हजारों वर्ष जुम्ह सहकर भी पंथ नही बदला
ये है मुझे गुमान अपने बुजुर्गों पर


हिंन्द के हिंन्दुस्तानीयों के खातमें की हसरत क्यों
तुमको जय श्री राम के नाम से इतनी दहशत क्यों
अपने आलीशान घरों में कुत्ते पालने बालों
तुम लोगों को गाय से इतनी नफरत क्यों


ये तो है के बहोत कम लिखता हुं
मगर जितना भी लिखता हुं गम लिखता हुं
तनहा होने का ये असर हुआ है मुझ पर
कि अब मैं की जगह हम लिखता हुं


शहीदों के दम पर कायम हमारी आजादी है
भारत के दुश्मनों अब तय तुम्हारी बर्बादी है
मलाल ये के दुश्मन भी दो कौंडी़ के मिले हैं हमें
एक कि नस्ल जेहादी है दुसरे की धोखेबाजी है


कहते हैं रोने से शहीदों की शहादत का मान घटता है
मातृभूमि पर बलिदान होकर ही जीवन का मान बढ़ता है
जिसके घर का चिराग बुझा है अंधेरा तो वही जानेगा
बेटे को तिरंगे में लिपटा देखकर मां का कलेजा फटता है

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शनिवार, 23 मई 2020

मुक्तक . चार लाइनों में बातें करुंगा आपसे 16

      नमस्कार , पिछले एक महीने में मैने कुछ मुक्तक लिखें हैं जिन्हें मैं आपके साथ साझा कर रहा हुं

धुतकारते क्यो हैं आने जाने वाले
क्या चाहते हैं ये जमाने वाले
वो दिल दुखाएं और हम रोए भी नही
क्या चाहते हैं ये चाहने वाले


बिगडी़ दोस्ती और खराब कर लेते हैं
आ पुराना हिसाब किताब कर लेते हैं
मेरे जयाति ताल्लुकात नही हैं उनसे
हां कहीं मिले तो अदबो आदाब कर लेले हैं


डर की सल्तनत को सरकार नही मानेगा
किसी गैर का अपनी रुह पर अधिकार नही मानेगा
हमारे हौसले के जद में आती है पुरी दुनियां
हिन्दूस्तान कोरोना से हार नही मानेगा


उसकी खुशीयां अंजाने के साथ भग गई
घर कि इज्जत जमाने के साथ भग गई
खबर छपी थी कल के अखबार में
फलाने कि बीबी फलाने के साथ भग गई


वाक्ये गिनने पे आया तो पैंतिश छत्तीश निकले
जिन्हे खुदा समझता था मै वो इबलीश निकले
कितनी गलतफहमीयां होती हैं हसीनाओं को लेकर
उनके एक दो आशिक नही पुरे इक्कीश निकले

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मुक्तक . चार लाइनों में बातें करुंगा आपसे 15

       नमस्कार , पिछले एक महीने में मैने कुछ मुक्तक लिखें हैं जिन्हें मैं आपके साथ साझा कर रहा हुं

ये आधा गिलास अॉशु है जिसे शराब कहती है ये दुनियां
हम लोग हि तो सच कहते है हम्हीं को खराब कहती है ये दुनियां
सब कहते हैं जहा पड़ता है सब जलाकर राख कर देता है
यानि के मोहब्बत को तेजाब कहती है ये दुनियां


सपनों कि हिफाजत नही करता मै
यानि कि मोहब्बत में सियासत नही करता मै
मै जानता हुं तेरे विचार मु्क्तलिफ हैं मुझसे
मगर तेरी खिलाफत नही करता मै


पार्टी मालिक के दरबार में हमाली मत करो इमरान
झुठ बोलकर दुआओ से हाथ खाली मत करो इमरान
तुम्हारी हकिकत क्या है जान ही गया है पुरा भारत
बस यही मसवरा है इमान कि दलाली मत करो इमरान


जवानी पर लगी कालिख बन के रह जाओगे
मासुका नही मिली तो नाबालिग बन के रह जाओगे
ऐ खुदा तुझे मालिक कहती है ये दुनियां
इसी गुमा में रहे तो मालिक बन के रह जाओगे


दिल कि दूरीयें में तरक्की चाहता हुं मैं
दुश्मनी भी पक्की चाहता हुं मैं
थोडा़ और थोडा़ और नफरत कर मुझसे
बेवफाई मी सच्ची चाहता हुं मैं

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शनिवार, 2 मई 2020

पहला प्यार

पहला प्यार

निरंतर कोशिशों के पश्चात भी
नहीं दे सके प्यार पहले प्यार की परिभाषा...
श्यामल सांझ के पन्नों में
शांत मन से लिखे कुछ शब्द
पहले पहले प्यार के अहसास से
पर यह क्या?????
शब्दों के साथ पन्ने भी कम पड़ गए...
कभी कभी लगता है
हम कितने अभागे हैं
पहले प्यार के विलक्षण एहसास को
समझ नहीं पाते हैं....
फिर लगता है
कितने भाग्यशाली हैं
समूची कायनात से
जिंदगी के हर पड़ाव पर
प्यार का एहसास होता है....
शिशु के रुदन के के साथ
एक मां के पहले प्यार का एहसास...
मेरे पहले प्यार का नाम
मेरे सर्वस्व की पहचान
जिसने जगत में लाकर
दिया मुझे मान....
पिता की उंगली पकड़ जब चलना सीखा
वह भी प्यार का एहसास था...
भाई की कलाई में मेरी पहली राखी
पहले प्यार के रूप में मेरे पास था.…
हर जगह पर रहते हैं पहले प्यार के पहरे
चेहरे के अंदर दिखते हैं मुझे चेहरे...
पहले प्यार का शायद अंत नहीं होता
निकल आती है कोई ना कोई गुंजाइश
किसी का प्यार कभी आखरी नहीं होता...

दीपमाला पांडेय
12 जून 2019 को 9:56 pm

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