शनिवार, 7 दिसंबर 2019

गजल , दिललगी सब से बारी बारी करो

     नमस्कार , यहा मै अपनी नयी गजल आपकी जानीब में रख रहा हुं मेरी दिली तमन्ना है कि मेरी ये नयी गजल आपको बेहद पसंद आएगी

दिललगी सब से बारी बारी करो
पहले जमी फिर आस्मा से यारी करो

ये जमीन जहरिली हो चूकी है
यहां से कहीं और बसने कि तैयारी करो

हवाओ से बाते करना पुराना हो चुका है
इस दौर में तुफानों पर सवारी करो

आस्मा जहर का धुआ बन गया है
सांसे चाहिए तो सजरकारी करो

घरवालों की यही नसीहत रहती है
नौकरी करो तो सरकारी करी

कोई गुलबदन महताब महजबी दिल चुरा नले
अपने सामान की पहरेदारी करों

मसला ये नही की कौन मोहतरम है
फैसले में सब कि रायशुमारी करो

अपने जिस्म के वास्ते सच बोलो
अपनी रुह से वफादारी करो

वस्ल का मंजर हसीन होता है तनहा
मोहब्बत में पहले हीजरत की तैयारी करो

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       इस गजल को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |

शनिवार, 30 नवंबर 2019

ग़ज़ल, देख रहा हुं मै

     नमस्कार , ये नयी गजल बिना किसी तमहिद भुमिका के आपके रुबरु रखना चाहुंगा

दुनिया भर का जुल्म अपने अंदर देख रहा हुं मै
खुन कि दरिया खुन का समंदर देख रहा हुं मै

क्या बताउ तुम्हे मैने सब भर ख्वाब में क्या देखा
अपने ही मौत का मंजर देख रहा हुं मै

क्यों ना रोऊ बारुद कि खेती सुनकर
सारी कि सारी धरती बंजर देख रहा हुं मै

अब भी वक्त है इंसानो रुख जाओ
हिलती हुई जमीन हवाओ में बवंडर देख रहा हुं मै

क्या कहुं कि खुदा गुनाह माफ करदे मेरे
तनहा कयामत का मंजर देख रहा हुं मै

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ग़ज़ल, तुम मानोगे नही

    नमस्कार , ये नयी गजल बिना किसी तमहिद भुमिका के आपके रुबरु रखना चाहुंगा

आज सुबह कि बात है तुम मानोगे नही
मुझे लगा कि रात है तुम मानोगे नही

वो हाथ उठाता है अपनी शरिक ए हयात पर
यकिनन जानवर कि जात है तुम मानोगे नही

क्यो देता है वो मुझे पीठ पिझे गालियां
यही उसकी असल औकात है तुम मानोगे नही

मोहरे हैं वक्त नसीब हालात और मुश्तकबील
हयात खुदा कि बिछाई विसात है तुम मानोगे नही

दुश्मनों ने जश्न मनाया है तनहा मेरी हार का
ये मेरी फेंकी हुई खैरात है तुम मानोगे नही

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ग़ज़ल, वो भी मुझसे मोहब्बत करती थी ना

      नमस्कार , ये नयी गजल बिना किसी तमहिद भुमिका के आपके रुबरु रखना चाहुंगा

अपने अॉशुओ से मेरे जख्मों कि हिफाजत करती थी ना
वो भी मुझसे मोहब्बत करती थी ना

कभी रोजा रखती थी कभी मन्नते मांगती थी
वो कितनी रवायत करती थी ना

कम से कम घर में सन्नाटा तो नही पसरा रहता था
वो तो कितनी शिकायत करती थी ना

ख्यालात मुक्तलिफ नही होते थे हमारे
फिर भी वो मेरी खिलाफत करती थी ना

हयात कि वो खुशीयॉ उसके साथ ही चली गई तनहा
वो तो फरमाइसें करके मेरी आफत करती थी ना

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