मंगलवार, 22 सितंबर 2020

ग़ज़ल , खबर में है

        नमस्कार , आज मैने एक नयी ग़ज़ल लिखी है जिसे मैं आपके दयार में रख रहा हुँ | कहना ये चाहुंगा के अगर आप हालिया खबरों से अवगत होंगे तो आपको इस ग़ज़ल का ज्यादा आनंद आएगा |

धुएँ में बीताई गई रात खबर में है

चर्चा शहर में और बात खबर में है


सत्तापक्ष का नेता गाली गलौच करता है

नेताजी की औकात खबर में है


ये आरक्षण आरक्षण का खेल है

इंसानों कि हर एक जात खबर में है


साजिश का मारा जो सितारा मर गया

अब उसके सारे हालात खबर में है


संदेह के घेरे में हैं बडे़ पर्दें के सितारे

नशे से हुई उनकी मुलाकात खबर में है


प्रेमी संग फरार हुई बेटी के मां-बाप हैं

तनहा उनके जज्बात खबर में है

      मेरी ये ग़ज़ल अगर अपको पसंद आए है तो आप मेरे ब्लॉग को फॉलो करें और अब आप अपनी राय बीना अपना जीमेल या जीप्लप अकाउंट उपयोग किए भी बेनामी के रूप में कमेंट्र कर सकते हैं | आप मेरे ब्लॉग को ईमेल के द्वारा भी फॉलो कर सकते हैं |

      इस ग़ज़ल को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |

रविवार, 20 सितंबर 2020

ग़ज़ल , तू का रिश्ता है

       नमस्कार , आज मैने एक नयी ग़ज़ल लिखी है जिसे मैं आपके साथ हिम्मत जुटाकर साझा कर रहा हुँ मुझे यकिन है कि मेरी ये ग़ज़ल आपको अच्छी लगेगी |

सहर और साम का जुस्तजू का रिश्ता है

हवाओं का फूलों से खुशबू का रिश्ता है


उसकी शादी के बाद से ये आदबो आदाब

वर्ना उससे मेरा आप का नही तू का रिश्ता है


न जाने जमाने भर को नागवार गुजरता है

परिन्दे का परिन्दी से गुफ्तगू का रिश्ता है


उसने ऐसे इंसानियत का रिश्ता निभाया है 

कहते है बीमार से उसका लहू का रिश्ता है


रोज घर में रामायण महाभारत साथ होती है

प्यार और तकरार का सास-बहू का रिश्ता है


कौन किसे जीजा कहे कौन किसे साला

दोनों का एक दुसरे से हूबहू का रिश्ता है


गर मोहब्बत का जलवा हो तो तनहा हो

आदत का अदाओं से आरजू का रिश्ता है

      मेरी ये ग़ज़ल अगर अपको पसंद आए है तो आप मेरे ब्लॉग को फॉलो करें और अब आप अपनी राय बीना अपना जीमेल या जीप्लप अकाउंट उपयोग किए भी बेनामी के रूप में कमेंट्र कर सकते हैं | आप मेरे ब्लॉग को ईमेल के द्वारा भी फॉलो कर सकते हैं |

       इस ग़ज़ल को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |

ग़ज़ल , बेरोजगार हुं साहब

       नमस्कार , आज ही मैने ये ग़ज़ल लिखी है जिसे मैं आपके सम्मुख रख रहा हुँ आशा करता हुँ की आपको मेरी यह ग़ज़ल प्रसंद आएगी | मैं इमानदार होकर कहुँं तो यह ग़ज़ल मेरे स्वयं के दिल के जज्वात कहती है क्योंकि कम्प्युटर साइंस एण्ड इंजिनियंरिंग से बैचलर ऑफ इंजिनियंरिंग कि डिग्री 2019 में पुरी कर लेने के बाद भी अभी तक मुझे कोई नौकरी या रोजगार नही मिल पाया है तो मैं उन लोगों की मनोदशा बहुत बेहतर करीके से समझ सकता हुँ जो परिवार वाले हैं बहरहाल आप मेरी इस ग़जल का आनंद लिजिए और कैसी रही जरुर बताइएगा |

समाज के नजरों में बेकार हुँ साहब

बाजार में बिकने को तैयार हुँ साहब


नाकारा निकम्मा दुसरे नाम होगए

मैं पढा़ लिखा बेराजगार हुँ साहब


वोट दे देने के बाद कुछ नही मिलेगा

मैं इतना तो समझदार हुँ साहब


शिर्फ मेरे भुखे मरने का सवाल नही

अपने परिवार का आधार हुँ साहब


कौन चाहता है लम्हे गिनकर दिन बिताना

मगर मैं क्या करुं लाचार हुँ साहब


तनहा लहू पसीना बनाकर बहा देंगें

जीतोड़ मेहनत के लिए बेकरार हुँ साहब

     मेरी ये ग़ज़ल अगर अपको पसंद आए है तो आप मेरे ब्लॉग को फॉलो करें और अब आप अपनी राय बीना अपना जीमेल या जीप्लप अकाउंट उपयोग किए भी बेनामी के रूप में कमेंट्र कर सकते हैं | आप मेरे ब्लॉग को ईमेल के द्वारा भी फॉलो कर सकते हैं |

      इस ग़ज़ल को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |

मंगलवार, 1 सितंबर 2020

ग़ज़ल , मुझसे मोहब्बत करो और सबर जाओ ना

     नमस्कार , आज मैं आपसे मेरी करीब डेढ़ साल पहले लिखी छ ग़ज़ले साझा करने जा रहा हुं मुझे आशा है कि आपको मेरी यह ग़ज़लें पसंद आएंगी इनमे से छठवी ग़ज़ल यू देखें के

मुझसे मोहब्बत करो और सबर जाओ ना

यू देख क्या रहे हो , सिधे दिल में उतर जाओ ना


गर तुम्हे जिंदगी देखनी है जिंदा लोगों में नजर आएगी

उधर क्या कर रहे हो , इधर आओ ना


अब तुम्हें ईश्क की गलतफहमी है तो इससे उनको क्या

तुम मरना चाहते हो तो मरो , मर जाओ ना


पत्थरों का क्या है वो तो टकराते ही रहेंगे

अब तुम कांच हो तो बिखरो , बिखर जाओ ना


अब आफत आई है तनहा तो गांव आ रहे हैं

और जाओ शहर , शहर जाओ ना

     मेरी ये ग़ज़ल अगर अपको पसंद आए है तो आप मेरे ब्लॉग को फॉलो करें और अब आप अपनी राय बीना अपना जीमेल या जीप्लप अकाउंट उपयोग किए भी बेनामी के रूप में कमेंट्र कर सकते हैं | आप मेरे ब्लॉग को ईमेल के द्वारा भी फॉलो कर सकते हैं |

      इस ग़ज़ल को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |

Trending Posts