शनिवार, 14 मार्च 2020

गजल , ये पप्पु क्या सोचेगा वो लल्ला क्या सोचेगा

    नमस्कार , मैने एक नयी गजल कहने कि कोशिश कि है गजल का मतला और कुछ शेर यू देखें कि

ये पप्पु क्या सोचेगा वो लल्ला क्या सोचेगा
पान कि दुकान पर बैठा निठल्ला क्या सोचेगा

जिसका नाम लेकर खुन बहा रहे हो अपनों का
जरा शर्म करो मेरे भाई वो अल्ला क्या सोचेगा

न बवाल करो न हंगामा करो न तमाशा करो
तुम इतना चिल्लाओगे तो हल्ला क्या सोचेगा

हर मसले का हल निकलेगा गर अमन से सोचो तो
तनहा घर में झगडा़ होगा पडो़शी झल्ला क्या सोचेगा

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गजल, गिरगिट की तरह रूप बदलता कौन है तुम जानते हो

      नमस्कार , मैने एक नयी गजल कहने कि कोशिश कि है गजल का मतला और कुछ शेर यू देखें कि

गिरगिट की तरह रूप बदलता कौन है तुम जानते हो
सच कहने से डरता कौन है तुम जानते हो

विधायक जी का शौक है पांच सितारा होटलों में जाम छलकाना
यहां भूख से मरता कौन है तुम जानते हो

तितलियों को आदत है फूल बदलते रहने की
एक डाल पर ठहरता कौन है तुम जानते हो

सांसद निवास में मखमली राजाओं की कोई कमी थोड़ी है
इधर ठंड में ठिठुरकर मरता कौन है तुम जानते हो

तन्हा मैंने भी बहुत सुनी है परियों की कहानियां
मगर असल में आसमान से उतरता कौन है तुम जानते हो

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शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2020

गजल ; पत्थर भी तैर जाता है पानी पर

     नमस्कार , मैने एक नयी गजल कहने कि कोशिश कि है गजल का मतला और कुछ शेर यू देखें कि

ग्रहण लगा है कहानी पर
किरदार बाकी है निशानी पर

दिल में कोई नेकनीयत रख कर तो देखो
पत्थर भी तैर जाता है पानी पर

बुजदिल ही सारी उम्र का हासिल हो तो क्या है
हो मुल्क पर कुर्बान फक्र है ऐसी जवानी पर

कहीं ना कहीं तो परियां होती होंगी
मुझे यकीन है अपनी नानी पर

दुनिया लोहा सोना पत्थर कि कारोबारी है
मैं रुका हूं तो बस फूलों की बागवानी पर

दिल देकर जो एहसान जताता रहे
लानत है ऐसी मेहरबानी पर

सरकारी दफ्तर में जायज कोशिश कर चुका हूं मैं
अब यकीन बाकी है तो बस चाय पानी पर

हस्त्र इमानदारों का देख देख कर तन्हा
दुनिया तुली हुई है बेईमानी पर

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गजल ; मय पी रहा हूं मुझे मरने की जल्दी है और क्या है

      नमस्कार , मैने एक नयी गजल कहने कि कोशिश कि है गजल का मतला और कुछ शेर यू देखें कि

मय पी रहा हूं मुझे मरने की जल्दी है और क्या है
ये सब तेरे आंखों की गलती है और क्या है

जिसे चांद चंद्रमा चंदा मेहताब कहती है ये दुनिया
हर रात वही छत पर निकलती है और क्या है

ये जो मौसम कभी हरा बसंती गुलाबी होता है
रंगबिरंगी वही ओढनियां बदलती है और क्या है

जब से ओढ़ ली है धरती ने हरे रंग की ओढ़नी
तभी से आसमान की ख्वाहिशें मचलती हैं और क्या है

वो के हवाले से उसकी सारी बात कह देते हैं महफिल में
ये तो शायरों की जुबान फिसलती है और क्या है

वो क्या है जिसका इस्तेमाल खाने में नहाने में लगाने में होता है
तन्हा इसका जवाब हल्दी है और क्या है

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