शनिवार, 6 मई 2017

अब झाड़ू पोछा हथियार बनाएं सब स्वच्छता का पर्व मनाए

          नमस्कार , आज हमारा देश भारत तरक्की की राह में अग्रसर है | पूरी दुनिया हमारी काबिलियत का लोहा मान रही हैअंतरिक्ष विज्ञान हो , चिकित्सा विज्ञान हो या  कंप्यूटर विज्ञान हो  हम हिंदुस्तानियों ने हर क्षेत्र में अपना  अतुलनीय योगदान दिया हैहमारे भारत की कई उपलब्धियों के साथ-साथ कई समस्याएं भी हैं जैसे गरीबी , बेरोजगारी , अशिक्षा , जनसंख्या वृद्धि इत्यादि | लेकिन एक समस्या ऐसी है जिसे मुझे लगता है कि हम हिंदुस्तानियों ने खुद समस्या बनने दिया है | वह समस्या है, 'अस्वच्छता' |

 सब स्वच्छता का पर्व मनाए

अब झाड़ू पोछा हथियार बनाएं      सब स्वच्छता का पर्व मनाए

 
मैंने यहां कुछ तस्वीरें पोस्ट की हैं  | जिसमें एक जगह  वह है जो गंदा है और दूसरा जगह वह है जो साफ है , अगर आपसे पूछा जाए कि आपको दोनों जगहों में से कौन सी जगह पसंद है तो जाहिर सी बात है कि आप स्वच्छ जगह को ही पसंद करेंगे | स्वच्छता के मामले में इसी तरह की  कुछ तुलना हमारे देश के बारे में भी होती होंगी
और हमें अपने देश को सबका पसंदीदा बनाना है  | इसके लिए जरूरी है कि हम सभी देशवासी मिलकर एक साथ प्रयास करें और अपने भारत को स्वच्छ बनाएं | स्वच्छता के इसी मकसद को साकार करने के उद्देश्य से मैंने एक कविता लिखने की कोशिश की है जिसका शीर्षक है -

अब झाड़ू पोछा हथियार बनाएं
    
सब स्वच्छता का पर्व मनाए


स्वच्छता का हो बोलबाला
गंदगी का हो मुंह काला
घर-आंगन , खेत- खलीहान , गांव-शहर
जन - जन के दिल में चले लहर
अस्वच्छता को मार भगाएं
अब झाड़ू पोछा हथियार बनाएं
    
सब स्वच्छता का पर्व मनाए

अब झाड़ू पोछा हथियार बनाएं      सब स्वच्छता का पर्व मनाए
अब झाड़ू पोछा हथियार बनाएं      सब स्वच्छता का पर्व मनाए

एक प्रतिज्ञा आज करें
खुद कहीं फैलाएं गंदगी
किसी को फैलाने दे गंदगी
स्वच्छ रखें हम अपना दिल
साफ सुथरा अपना हिंदुस्तान बनाएं
अब झाड़ू पोछा हथियार बनाएं
    
सब स्वच्छता का पर्व मनाए

गंदा घर किसे है भाता
मगर यह सोचिए इसे गंदा कौन बनाता
आलस्य का अब दामन छोड़ें
हर मन में यह चेतना जगे
गांधी बापू का सपना साकार  कर दिखलाएं
अब झाड़ू पोछा हथियार बनाएं
    
सब स्वच्छता का पर्व मनाए


        मेरी यह कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्स के जरिए जरूर बताइएगा | अगर अपने  विचार को बयां  करते वक्त मुझसे शब्दों में कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए माफी चाहूंगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार |              

शुक्रवार, 24 मार्च 2017

बिकाऊ है

   'बिकाऊ है' मैंने यह हास्य व्यंग कविता  हमारे समाज में फैले दहेज प्रथा जैसे विषाक्त  कुरीति से प्रेरित होकर लिखा है | दहेज प्रथा हमारे समाज  की एक ऐसी  कुरीति है , एक ऐसी बुराई है जिसने विवाह जैसे पवित्र रिश्ते को मात्र एक व्यापार बना कर रख दिया है | जहां ऐसा लगता है कि शादी दो दिलों का रिश्ता ना होकर , दो परिवारों का रिश्ता ना होकर  मात्र क्रेता और विक्रेता का रिश्ता हो | जहां वर पक्ष विक्रेता और वधू पक्ष क्रेता होते हैं |        
                
दहेज प्रथा

       जहां वर के मूल्य का आकलन उसके शिक्षित और कामकाजी होने के आधार पर किया जाता हैविवाह में इसी व्यापार के वजह से आज बेटियां मां बाप के लिए  बोझ स्वरूप लगती हैं | दहेज की इसी आग में हर रोज हजारों बहू बेटियों प्रताड़ित किया जाता है  यहां तक कि दहेज की इस आग में  कभी-कभी बहू बेटियों को जला तक दिया जाता है


 हमारी बहू बहन-बेटियों की गरिमा एवम सुरक्षा के लिए यह बहुत जरूरी हो गया है कि हमारे समाज , हमारे देश का प्रत्येक व्यक्ति इसे अपने स्तर पर खत्म करने का बीड़ा  उठाए | नहीं तो मुझे लगता है कि कुछ दिनों बाद कुछ इस तरह से अखबारों में  विवाह के लिए विज्ञापन दिए जाएंगे -

बिकाऊ है
इच्छुक ग्राहक संपर्क करें
खत एवं ईमेल की सुविधा भी उपलब्ध है
कृपया देर बिल्कुल भी ना करें
ऐसा मौका ना गवाएं
भारी छूट का लाभ उठाएं
                   
दहेज प्रथा
उम्र 24 साल
कद 5 फुट 10 इंच है
रंग गोरा शरीर मजबूत है
युवक शिक्षित एवं नौकरी धारक है
सालाना आय 6 अंको में है
गृहकार्य में भी महारत हासिल है
विवाह के लिए सुयोग्य
जाति एवं धर्म बंधन है
कीमत मात्र 1000000 रुपए से शुरू
इससे दुगनी कीमत देने वालों को
प्राथमिकता दी जाएगी
कृपया इन माध्यमों से संपर्क करें

वैधानिक सूचना
युवक की उपयोगिता का आश्वासन 
विक्रेता द्वारा नहीं दिया जाता
बिका हुआ माल वापस नहीं लिया जाता
शर्तें लागू

  
मेरी यह हास्य व्यंग कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्स के जरिए जरूर बताइएगा | अगर अपने  विचार को बयां  करते वक्त मुझसे शब्दों में कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए माफी चाहूंगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार |

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