सोमवार, 19 सितंबर 2022
ग़ज़ल , जिसमें हो परमेश्वर का नाम वो चौपाई नही हो सकते तुम
शनिवार, 10 सितंबर 2022
नज्म , बेपर्दा औरतें ऐसी नही होतीं
नमस्कार , आज मैने ये नज्म लिखी है जिसे मैं आपके साथ साझा कर रहा हूं नज्म कैसी रही मुझे जरूर बताइएगा कमेंट्स के माध्यम से |
बेपर्दा औरतें ऐसी नही होतीं
बेपर्दा औरतें ऐसी नही होतीं
वों तो कहकहे लगाती हैं जमाने के सामने
इनकार कर देती हैं उन रवायतों को मानने से
जो उन्हें रोकते हैं जमाने के साथ कदम मिलाकर चलने से
अपने वजूद को पहचानने से
वो बड़ी बेबाकी से चिल्लाकर ना कहतीं हैं
उन लोगों को जो उन्हें बोलने नही देते
गाने नही देते हंसने नही देते
वो काट डालती हैं ऐसे पिंजरों को जो उन्हें कैद करना चाहते हैं
वो अपने चेहरों को नकाबों से ढकती नही हैं
वो चार लोगों के कुछ कहने की परवाह नही करती
वो किसी से डरती नही हैं
वो परवाह करती हैं तो बस अपनी
अपनी आजादी की
अपनी खुदमुख्तारी की
एक अजीब सी बगावत होती हैं उनमें
गज़ब की अना होती है उनमें
नही , ऐसी नही होतीं
बेपर्दा औरतें
मेरी ये नज्म आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |
सोमवार, 5 सितंबर 2022
गीत , श्याम गर मैं बनूं रुक्मिणी तुम बनो
नमस्कार , कुछ रचनाएं ऐसी होती हैं जिन्हें रचनाकार न सिर्फ रचता है बल्कि उसे जीता भी है या भविष्य में जीना चाहता है आज जो ये गीत मैं ने लिखा है यह उसी तरह की रचना है | यह गीत आपके अवलोकन के लिए उपस्थित है |
प्रेम डोर से बंधी बंदीनी तुम बनो
प्रेम रंग में रंगी रंगीनी तुम बनो
तुम न राधा बनो तुम न मीरा बनो
श्याम गर मैं बनूं रुक्मिणी तुम बनो
प्रेम अंकुर भरा है संसार में
छंद में रस में , अलंकार में
इतने तारे सितारे गगन में हैं क्यों
प्रेम पल्लवित होता है अँधियार में
प्रेम संगीत का एक स्वर है वही
राग गर मैं बनूं रागिनी तुम बनो
प्रेम डोर से बंधी बंदीनी तुम बनो
प्रेम रंग में रंगी रंगीनी तुम बनो
तुम न राधा बनो तुम न मीरा बनो
श्याम गर मैं बनूं रुक्मिणी तुम बनो
प्रेम कंकड़ में शंकर दिखाता है
प्रेम ही तो सावित्री बन जाता है
कभी मेघों को दूत बनाता है प्रेम
प्रेम अंकों में भी मिल जाता है
प्रेम है एक तपस्या चिदानंद है
योग गर मैं बनूं योगिनी तुम बनो
प्रेम डोर से बंधी बंदीनी तुम बनो
प्रेम रंग में रंगी रंगीनी तुम बनो
तुम न राधा बनो तुम न मीरा बनो
श्याम गर मैं बनूं रुक्मिणी तुम बनो
प्रेम शब्दों में बंधकर निहित नही
प्रेम रुपों में रंगों में चिन्हित नही
इससे उंचा हिमालय न सागर है गहरा
प्रेम जैसा कोई फूल सुगंधित नही
प्रेम में विरह भी मधु ही लगे
संग गर मैं बनूं संगिनी तुम बनो
प्रेम डोर से बंधी बंदीनी तुम बनो
प्रेम रंग में रंगी रंगीनी तुम बनो
तुम न राधा बनो तुम न मीरा बनो
श्याम गर मैं बनूं रुक्मिणी तुम बनो
मेरी ये गीत आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |
शुक्रवार, 19 अगस्त 2022
गीत , कान्हा कहो ना प्रेम क्या है
नमस्कार , आप सभी को श्री कृष्ण जन्माष्टमी की बहुत बहुत शुभकामनाएं | श्री कृष्ण जन्माष्टमी के इस पावन अवसर पर मैने भगवान श्री कृष्ण को समर्पित ये गीत लिखा है |
कान्हा कहो ना प्रेम क्या है
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क्या है वो पीड़ा विरह की
कान्हा कहो ना प्रेम क्या है
रहस्य जो है संयोग वियोग में
भेद छुपा है जो वेदना में
नर नही तुम हो नारायण
धर्मनिष्ठ हो कर्तव्यपरायण
कर्म में हो निहित तुम भी
पर प्रेम में मोहित तुम भी
सत्य का विश्वास तुम हो
ब्रह्मांड में प्रकाश तुम हो
झूठ भी तो तुम में है
हो तुम्हीं सत्य की चेतना में
क्या है वो पीड़ा विरह की
कान्हा कहो ना प्रेम क्या है
रहस्य जो है संयोग वियोग में
भेद छुपा है जो वेदना में
मुझसे सब यथार्थ कहो
सारांश कहो भावार्थ कहो
राधा से वियोग रुक्मिणी से योग
इसका सब निहितार्थ कहो
समय के तीनों आयामों में तुम हो
गति और विरामों में तुम हो
मुझसे छंदों में कहो या श्लोकों में
या कहो तुम विवेचना में
क्या है वो पीड़ा विरह की
कान्हा कहो ना प्रेम क्या है
रहस्य जो है संयोग वियोग में
भेद छुपा है जो वेदना में
मुझसे कहो आनंद क्या है
और फिर परमानंद क्या है
मोक्ष निहित है ब्रह्म में या
या फिर मोक्ष परब्रह्म में है
जीव का अस्तित्व क्या है
या मरण का महत्व क्या है
अमृततुल्य प्रशंसा है या
या की है ये आलोचना में
क्या है वो पीड़ा विरह की
कान्हा कहो ना प्रेम क्या है
रहस्य जो है संयोग वियोग में
भेद छुपा है जो वेदना में
मेरी ये गीत आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |
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