शनिवार, 25 जनवरी 2025

कविता, गणतंत्र के साढ़े सात दशक

 नमस्कार, गणतंत्र दिवस के पावन अवसर पर हमारे महान गणतांत्रिक देश भारत को समर्पित मैं ने एक नयी कविता लिखने का प्रयास किया है जिसे मैं आपके साथ साझा कर रहा हूं मुझे आशा है कविता आपको पसंद आएगी। 


गणतंत्र के साढ़े सात दशक 


पहला दशक अभिमान का था 

मां भारती के गौरव गान का था 


दुसरा दशक आत्मसम्मान का था 

भारत माता की स्वाभिमान का था 


तिसरा दशक भारत के पहचान का था 

और गणतंत्र पर संकट समाधान का था 


चौथा दशक कई प्रावधान विधान का था 

गणतंत्र जनित समस्या और निदान का था 


पांचवां दशक नए बदलाव का था 

विश्व से फिर नए लगाव का था 


छठवां दशक धन के बहाव एवं ठहराव का था 

भारत कि चेतना पर फिर लगे घाव का था 


सातवां दशक जन जागृति एवं विश्वास का था 

सामान्य मानव जीवन में आ रहे नए प्रकाश का था 


वर्तमान में चल रहा दशक प्राचीन गौरव के भान का है 

और भविष्य के स्वर्णिम भारत के आहवान का है

सोमवार, 11 नवंबर 2024

ग़ज़ल, दिल हमारा गुनहगार नहीं है

 दिल हमारा गुनहगार नही है 

ऐसा कोई पहली बार नही है 


हर बार यही सोचता हूं आखरी है 

मगर ये भी आखरी बार नही है


तुझे रास्ता बदलना है तो ऐलानिया बदल 

हमें भी कोई तेरा ही इंतजार नही है 


सांचे में ढालकर कांसे को सोना बना दूं 

ये मेरी कहानी है मगर मेरा किरदार नही है 


तनहा आसान नहीं है जुर्म कबूल कर लेना 

मुझे बेगुनाह समझे ऐसी सरकार नही है

गुरुवार, 31 अक्टूबर 2024

मुक्तक, हम जय श्री राम कहेंगे

हम भारत की शान को भारत कि शान कहेंगे।  

हम अपने भगवान को तो, भगवान कहेंगे। 

अयोध्या ही नहीं पुरा देश स्वागत कर रहा है। 

हम अपने प्रभु श्री राम को सादर जय श्री राम कहेंगे।

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