मंगलवार, 16 जुलाई 2024

ग़ज़ल, अपनी नजरों से आज़ाद कर मुझे

आज फिर एक बार हाजिर हूं अपनी एक नई ग़ज़ल के साथ|


अपनी नजरों से आज़ाद कर मुझे 

अब ना और बर्बाद कर मुझे 


तू मशहूर है दुनिया बनाने के लिए 

तो फिर अब आबाद कर मुझे 


मैं ताराज हूं तेरे ख्यालों में 

आ फिर से नाराज़ कर मुझे 


आजकल दिल मेरा बहुत खुशमिजाज है 

तुझसे इल्तज़ा है नासाज कर मुझे 


मैं ने एकतरफा निभाई है रश्म मोहब्बत कि 

अब तनहा इस रिश्ते से आज़ाद कर मुझे


अगर ग़ज़ल आपको अच्छी लगे तो मुझे कमेंट करके अवश्य बताएं मुझे आपके कमेंट का इंतजार रहेगा|नमस्कार|

सोमवार, 15 अप्रैल 2024

कविता, राम का आधुनिक वनवास भाग ४

 भाग ४

२२ जनवरी सन २०२४ का वह पावन दिन

सुखद मंगलकारी और मन भावन दिन

जब देखा पुरे विश्व ने राम को नव मंदिर में

हर्षित हो गई मनगंगा ऐसा अतिपावन दिन


अंत हो गयी अंतहिन प्रतीक्षा 

युगों युगों तक होगी समीक्षा

राम अवध के अवध राम की

पुर्ण हो गई मन की सब इच्छा

कविता, राम का आधुनिक वनवास भाग ३

 भाग ३

जब कलयुग ने विस्तार किया

असत्य का सत्कार किया

नष्ट होने लगी जब मर्यादा

राम का तिरस्कार किया


विश्वास को अविश्वास दिया

समृद्धि को उपहास दिया

कामी कपटी लोभी मोही सत्ताओं ने

फिर राम को वनवास दिया


अब का वनवास पांच सौ वर्षो था 

अंधकार का ये कालखंड संघर्षो का था 

बस एक नाम था भारत के पास राम 

पुनः गृह आगमन का प्रतीक्षा काल वर्षों का था

कविता, राम का आधुनिक वनवास भाग २

 भाग २


तब कर्म ने अधिकार लिया

पृथ्वी पर उपकार किया

मर्यादा की स्थापना के लिए

प्रभु ने राम रुप अवतार लिया


जब पुरुषोत्तम ने पुरुषार्थ दिखाया

आतंक को यथार्थ दिखाया

पाप और अत्याचार का दमन कर

विश्व को सत्यार्थ दिखाया 


मर्यादा पुरुषोत्तम को जान लिया

जग ने सत्य को मान लिया

फिर राम राज्य नही होगा

पृथ्वी ने भी पहचान लिया

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