शनिवार, 14 मार्च 2020

गीत , दो हंसो का जोडा़ हम

     नमस्कार , मैने आज एक नयी गीत लिखी है जिसे मै आपके आंगन में रखना चाहुंगा मुझे आशा है कि मेरी यह गीत आपके मन को भाएगी

दो हंसो का जोडा़ हम
आधा आधा पुरा हम

ईकाई मै ईकाई तुम
दोनो मिलकर दहाई हम
हम लिलें तो शब्द बने
जैसे कागज स्याही हम
हवा बसंती मस्त बयार
तो झूलों का हिलोडा़ हम

दो हंसो का जोडा़ हम
आधा आधा पुरा हम

राधा कृष्ण सी निर्मलता हम में
प्रेम कि उज्वलता हम में
सिताराम ह्रदय विराजे
चांद कि सितलता हम में
हम्हीं हैं दिन रात और
साम और सवेरा हम

दो हंसो का जोडा़ हम
आधा आधा पुरा हम

अपना और पराया हम से
धन दौलत कि माया हम से
गुलाब कि खुशबु हम हैं
पिपल कि छाया हम से
जितना आधा धरती अंबर
उतना हि अधुरा हम

दो हंसो का जोडा़ हम
आधा आधा पुरा हम

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      इस गीत को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार | 

भजन , जपो नम: शिवाय , बोलो नम: शिवाय

       नमस्कार , आपको शिव उपासना के सबसे बडे़ पुर्व महाशिवरात्री कि आपको हार्दीक शुभकामनाए | महाशिवरात्री के पावन पर्व पर मैने एक नया भजन लिखा है जिसे मै आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हुं इस विश्वास के साथ कि यह आपको प्रसंद आएगा |

बस नाम लेले हि कष्ट सारे कट जाएं
जपो नम: शिवाय , बोलो नम: शिवाय

बाबा देवो के देव
बाबा भुतों के स्वामी
बाबा कालों के काल
मां गौरा के स्वामी

भक्ति से पुकारो तो बिगडे. काम बन जाएं
जपो नम: शिवाय , बोलो नम: शिवाय

हाथ में त्रिशुल माथे पे चंदा
गले में शोभे शेसनागजी का फंदा
निलकंठ भुतनाथ त्रीनेत्रधारी
डमरु बजाएं जटा में मां गंगा

आओ सब मिलकर शिव गुण गाए
जपो नम: शिवाय , बोलो नम: शिवाय

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कुछ मुक्तक

     नमस्कार , इस महिने के मध्य में मैने कुछ मुक्तक लिखे हैं जिन्हे मै आपके दयार में हाजिर कर रहा हुं मुझे यकिन है कि मेरे ये मुक्तक आपको मुतासिर करेंगें |

दुनियॉ लगी है बस पैमाने बनाने में
मै लगा हुं हथेलियों के दस्ताने बनाने में
एक स्कुल बनाने में जिन्दगी गुजर जाती है
एक माह भी नही लगते मयखाने बनाने में


मेरा दिल है भारत मेरा वतन मासाअल्लाह
मेरी जान इस पर कुर्वान मेरे चमन मासाअल्लाह
झुठ बोलकर यार मेरे हमवतनों को गुमराह न कर
तु तो माहिर है इसी में तेरा फन मासाअल्लाह


कभी सोचता हुं कि इतना चाहुं इतना चाहुं उसे
मगर और कितना चाहुं कितना चाहुं उसे
ये कैसी तिशनगी है कि समंदर पिकर भी नही मानती
प्यास बढती जाती है जितना चाहुं जितना चाहुं उसे


दुनियां ने मोहब्बत का दायरा लिख दिया
मैं उसका शायर और उसे शायरा लिख दिया
जितने में उसका आशिक एक शेर नही कह पया
उतनी देर में मैंने उस पर मुशायरा लिख दिया


तमाम पेंडो़ से परिंदे जुदा होगए यार
वो हंसते हुए मंजर कहां होगए यार
एक दौर में यहा महफिले सजा करती थी यारों कि
अब वो सारे दिन हवा होगए यार


वो मंजर कहां देखा था कहां देखा था मैने
मुझे याद नही खंजर कहां देखा था मैने
निकल रहे थे उसके आंख से इतने अॉशु
अब याद आया मुझे समंदर कहां देखा था मैने


शायर है झुठी गुफ्तगु भी खुशुशि कर रहा है
मुल्क को चाहनेवालों सच बोलों जरुरी कर रहा है
मेरे दोस्तों अब बारी आई है दोस्ती निभाले कि
क्योकि दुस्मन अपना काम बखुबी कर रहा है

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कविता , हमें सरदार ने सिखाया था

    नमस्कार , मैने एक कविता लिखी है भारत के प्रथम गृहमंत्री और तेजस्वी नेता लौह पुरुष सरदार पटेल को समर्पित करते हुए

हमें सरदार ने सिखाया था

कण कण जोड़कर एक घर बनाना
घर को सुनहरे सपनों से सजाना
सपनों को अपने दुश्मनों से बचाना
हमें सरदार ने सिखाया था

गली-गली गांव-गांव पग-पग अनेकता
भाषा , बोली , रंग , पंथ , भाव की विभिन्नता
विभिन्नता में एक स्वर में एकता
हमें सरदार ने सिखाया था

नफरतों की साजिशों की हुई पराजय
लोकतंत्र के भावना की हो गई विजय
लाख दुश्मन हो मगर भारत रहेगा अजय
हमें सरदार ने सिखाया था

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