शुक्रवार, 8 जून 2018

प्रभाती लोकगीत , अब तुम भी जागो नंदलाला

    नमस्कार ,  प्रभाती भी एक लोकगीत है | इसे मां अपने बच्चे को सुबह के समय जगाने के लिए गाती हैं | प्रभाती लोक गीत भी भारत के कई हिस्सों में गायी जाती है जैसे मध्य प्रदेश , उत्तर प्रदेश , बिहार , राजस्थान आदि | प्रभाती में भी लोरी के तरह ही  वात्सल्य रस का समावेश होता है | प्रभाती लोक गीतों में  माता यशोदा द्वारा भगवान श्रीकृष्ण को सुबह के समय जगाने के दृश्य का गीतों में अनुसरण मिलता है |

    22 मई 2018 को ही मैंने एक प्रभाती भी लिखी थी जिसे मैं आपके साथ साझा कर रहा हूं , मेरे प्रयासो को आपके आशीर्वाद की उम्मीद है -

प्रभाती लोकगीत , अब तुम भी जागो नंदलाला

कलियां जागी , फूल जागे
तितलियां जागी , पत्ते जागे
जागे सारे ग्वाला
सारी दुनिया जाग गई
अब तुम भी जागो नंदलाला

कहीं गेंद खेलो
कहीं माखन खाओ
कहीं मटकी फोडो
दिखाओ कोई खेल निराला
सारी दुनिया जाग गई
अब तुम भी जागो नंदलाला

मैं अब ना तुम्हें जगाउंगी
अपना प्रभाती जाऊंगी
अभी मंदिर भी सजाना है
बनानी है फूलों की माला
सारी दुनिया जाग गई
अब तुम भी जागो नंदलाला

      मेरी ये प्रभाती लोकगीत आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्स के जरिए जरूर बताइएगा | अगर अपने विचार को बयां करते वक्त मुझसे शब्दों में कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मैं तहे दिल से माफी चाहूंगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार नयी रचनाओं के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार |  

गुरुवार, 7 जून 2018

लोरी , बेटा मेरे सो जा अब हो गई है रात

    नमस्कार , अब मैं जिस लोकगीत के बारे में बात करने जा रहा हूं  वह एक ऐसा लोकगीत है जो भाषा , क्षेत्र , राज्य आदि सीमाओं के परे है | क्योंकि लोरी एक ऐसा लोक गीत या गीत है जिसे हर मां अपने बच्चे को सुलाने के लिए बड़े प्यार से गाती है |  हां लोरी की रचना अलग अलग भाषाओं में अलग अलग हो सकती है  लेकिन हर लोरी वात्सल्य रस से भरी हुई होती है  जिसे सुनकर बच्चे को चैन की नींद आती है | हम सब ने भी अपने-अपने बचपन में अपनी अपनी मांओ से लोरी जरूर सुनी होगी |  वर्तमान हालात में हमारे बडे शहरों में भले लोरियां गायक सी होती जा रही हो लेकिन गांवो में यह आज भी फल-फूल रही हैं |

     एक मां के उसके बच्चे से प्यार की कोई तुलना नहीं की जा सकती | मां की ममता को प्रदर्शित करती  हुई मेरी एक लोरी जिसकी रचना मैंने 22 मई 2018 को की थी आपके स्नेह के लिए साझा कर रहा हूं -

टीम टीम करने लगे हैं तारे
चमकने लगा है चांद
बेटा मेरे सो जा
अब हो गई है रात

लोरी , बेटा मेरे सो जा अब हो गई है रात

निंदिया रानी आएगी
सपने खूब दिखाएगी
यह रात बीत जाएगी
सुबह मां खिलाएगी
मुन्ने को दूध भात
बेटा मेरे सो जा
अब हो गई है रात

कल का सूरज आएगा
खिलौने ढेरों लाएगा
मेरा मुन्ना खूब खेलेगा
मैया भी खेलेगी मुन्ने के साथ
बेटा मेरे सो जा
अब हो गई है रात

टीम टीम करने लगे हैं तारे
चमकने लगा है चांद
बेटा मेरे सो जा
अब हो गई है रात

      मेरी ये लोरी लोकगीत आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्स के जरिए जरूर बताइएगा | अगर अपने विचार को बयां करते वक्त मुझसे शब्दों में कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मैं तहे दिल से माफी चाहूंगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार नयी रचनाओं के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार |  

सोहर लोकगीत , राम जोगे जनमें ललनवा

     नमस्कार ,  सोहर एक लोकगीत है जो मध्य प्रदेश के बघेलखंड , राजस्थान एवं उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों में गाया जाता है |  सोहर लोकगीत नवजात बच्चे के जन्म होने की खुशी में गाया जाता है | जब मां बच्चे को जन्म देती है तो घर की बाकी औरतें बच्चे के जन्म होने की खुशी में सोहर गाती हैं | सोहर एक बहुत ही प्रचलित लोकगीत है जो कि लगभग हर हिंदी भाषी राज्य में गाया जाता है |

       21 मई 2018 को मैंने भी एक सोहर लोकगीत की रचना की है इस लोकगीत को मैं आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूं इस मिटती हुई लोकगीत की विधा को  आपके प्यार की जरूरत है | आशा है इस सोहर लोकगीत को आपका प्यार जरूर मिलेगा -

राम जोगे जनमें ललनवा
सजाओ रे पलनावा
आज बड़ा शुभ दिन है

सोहर लोकगीत , राम जोगे जनमें ललनवा

बधाई हो बाबा के
बधाई हो माई के
बधाई हो दादा के
बधाई हो दादी के
आज बड़ा शुभ दिन है

आनंद भयो रे भवनमां
जुग जुग बाढ रे ललनवा
ठुमक चले रे अगनवां
आज बड़ा शुभ दिन है

राम जोगे जनमें ललनवा
सजाओ रे पलनावा
आज बड़ा शुभ दिन है

      मेरी ये सोहर लोकगीत आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्स के जरिए जरूर बताइएगा | अगर अपने विचार को बयां करते वक्त मुझसे शब्दों में कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मैं तहे दिल से माफी चाहूंगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार नयी रचनाओं के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार |  

मंगलवार, 5 जून 2018

दो मुक्तक काव्य

    नमस्कार ,  मुक्तक काव्य  , श्रव्य काव्य का दूसरा भेद है |  श्रव्य काव्य का पहला भेद प्रबंधन काव्य है | जिसके उपभेद महाकाव्य , खंडकाव्य और आख्यानक गतियां हैं | मुक्तक काव्य की विषय वस्तु स्वतंत्र होती है | यानी मुक्तक काव्य में कहानी या विषय वस्तू का प्रबंधन नहीं होता |  मुक्तक काव्य की रचना छोटे-छोटे पदों या दोनों में की जाती है |  मीराबाई के भक्ति के पद एवं बिहारी के दोहे मुक्तक काव्य की कुछ प्रमुख रचनाएं हैं

     3 जून 2018 को मैंने दो  मुक्तक पदों की रचनाएं की है | जिन्हें मैं आपके साथ साझा कर रहा हूं |

                            (1)

गिरिधर , कृष्ण , गोपाल

राधा के प्रभु

राधा के प्रभु गिरिधर , कृष्ण , गोपाल
मधुर मधुर बंसी बजाओ
फिर आगन में गईया चराओ
मटकी फोड़ी , माखन चुराओ
गवालों कि तुम फिर टोली बनाओ
हम हैं तुम्हारे दरश को प्यार से
गईयों के रखवाल
राधा के प्रभु गिरिधर , कृष्ण , गोपाल

                           (2)

राम आओ एक बार फिर

राम आओ एक बार फिर

राम आओ एक बार फिर
तुम अवधपुर में
कैसी बची है तुम्हारी अयोध्या
कितनी रही है तुम्हारी अयोध्या
कहां है तुम्हारा भवन वो अवधपुर में
एक बार फिर से वसाओ
तुम्हारा राज फिर अवधपुर में
राम आओ एक बार फिर
तुम अवधपुर में

      मेरे ये दो मुक्तक काव्य आपको कैसे लगे मुझे अपने कमेंट्स के जरिए जरूर बताइएगा | अगर अपने विचार को बयां करते वक्त मुझसे शब्दों में कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मैं तहे दिल से माफी चाहूंगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार नयी रचनाओं के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार |  

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