रविवार, 27 मई 2018

बच्चे खेलना भूल गए

    नमस्कार ,  मेरी यह कविता ' बच्चे खेलना भूल गए ' मैंने आज से तकरीबन चार-पांच दिन पहले  तब लिखा , जब मैंने एक तकरीबन दो-तीन साल के बच्चे को स्मार्टफोन चलाते हुए देखा | अगर आमतौर पर देखा जाए तो यह कोई हैरत की बात नहीं है  क्योंकि अब बड़े शहरों में यह सब  आम हो गया है कि बच्चे घर के बाहर खेल कम खेलते हैं और घर के अंदर मोबाइल पर खेल ज्यादा खेलते हैं | लेकिन आज से तकरीबन अगर बिस तिस साल पहले की बात सोचे तो उस समय के बच्चे को इन सब चीजों का नाम तक नहीं पता रहा होगा | और उस समय के बच्चे घर के बाहर खेला करते थे जिससे उनका शारीरिक और मानसिक विकास होता था लेकिन आज के बच्चे केवल डिजिटली ही इंटेलिजेंट हो रहे हैं फिजिकली और मेंटली ग्रोथ उनकी रुक सी गई है और यह चीज उनकी पूरी जिंदगी भर के लिए नुकसान दे है |

      इन्हें कुछ ख्यालों के साथ में यह कविता आपके समक्ष रखता हूं आपके प्यार की  आशा है -

बच्चे खेलना भूल गए

बच्चे खेलना भूल गए

आम के पेड़ के नीचे
गोटिया , कितकित , टीवी , गिप्पी गेंद
खेलते खेलते गिरना पडना
और लड़ना झगड़ना भूल गए
बच्चे खेलना भूल गए

किताबों का गोदाम है
जो बसते में भरा है
जो कुछ बस्ते में नहीं है
वह कंप्यूटर में धारा है
पढ़ाई के दबाव में
सावन का झूला झूलना भूल गए
बच्चे खेलना भूल गए

कंचे और छुपन छुपाई
खो-खो और चोर सिपाही
मकर संक्रांति के त्योहारों में
कटी पतंगे लूटना भूल गए
बच्चे खेलना भूल गए

      मेरी ये कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्स के जिए जरूर बताइएगा | अगर अपने विचार को बयां करते वक्त मुझसे शब्दों में कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मैं तहे दिल से माफी चाहूंगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार नयी रचनाओं के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार |  

मासूमियत खतरे में है

     नमस्कार ,  एक बड़ी पुरानी कहावत है कि ' बच्चे भगवान का रुप होते हैं ' और देखा जाए तो यह कहावत सही भी है | बचपन के दिन एक इंसान की जिंदगी के सबसे सुनहरे दिन होते हैं जो उसे दुनियादारी की सारी तकलीफों को जाने बिना सुकून से कुछ वर्ष गुजारने का मौका देता है | लेकिन आज हमारे समय में जमाने की दौड़ ने , कामयाबी पाने की कोशिश में मासूम बच्चों से वही सुनहरे दिन छीन लिए हैं | और उनके कंधों पर किताबों का बोझ डाल दिया है जोकी धीरे-धीरे उनके बचपन को निगलता जा रहा है और यही कमी उन्हें शारीरिक और मानसिक रुप से कमजोर बना रही है |

  ' मासूमियत खतरे में है ' मेरी इस कविता में मैंने उन्हीं पहलुओं को दर्शाया है जो आज की सच्चाई को उजागर करती है | मेरी यह कविता तकरीबन तीन चार दिन पुरानी है जिसे मैं इस ब्लॉग पर आपके साथ साझा कर रहा हूं | मुझे यकीन है आप भी मेरे विचारों से इत्तेफाक रखते होंगे -

मासूमियत खतरे में है

मासूमियत खतरे में है

किताबों के बोझ तले
बचपन अब कंप्यूटर में जल्दी
होमवर्क का दबाव में
जैसे साइकिल हो ढलाव में
जमाने के साथ कदम से कदम मिलाकर चलना
मतलब पेड़ का समय से पहले फलना
एक नया नया चेहरा के अंधेरे में है
मासूमियत खतरे में है

      मेरी ये कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्स के जिए जरूर बताइएगा | अगर अपने विचार को बयां करते वक्त मुझसे शब्दों में कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मैं तहे दिल से माफी चाहूंगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार नयी रचनाओं के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार |  

बुधवार, 16 मई 2018

क़व्वाली , लोग मुझको दीवाना कहने लगे

    नमस्कार ,  कव्वाली उर्दू साहित्य कि वह विधा है जो गायन में गजल के बाद सर्वाधिक लोकप्रिय है | कव्वाली अमीर खुसरो की विरासत है जो लगातार लोकप्रिय एवं विस्तृत होती चली जा रही है | उर्दू महफिलों की शान कव्वाली हजारों कव्वाली गायकों एवं शायरों के द्वारा लगातार सहेजी जा रही है | कव्वाली के पुरुष गायकों को कव्वाल एवं महिला गायकों को कव्वाली ही कहा जाता है |\

क़व्वाली , लोग मुझको दीवाना कहने लगे

     बीती सहर मैंने भी एक कव्वाली की रचना की है | जिसे मैं आपकी खिदमत में पेश कर रहा हूं | मुझे यकीन है मेरी ये कव्वाली  पढ़कर आपको उतना ही लुत्फ आएगा जितना कव्वाली सुनकर आता है | कव्वाली पेश है -

लोग मुझको दीवाना कहने लगे

उसने गजब की चली चाल ये
लोग तरस खा रहे हैं मेरे हाल पे
शिकवा मुझे उससे कुछ भी नहीं पर
लोग मुझको दीवाना कहने लगे

यह मोहब्बत है बस जहर की तरह
जब से हुई हम मरने लगे
लोग मुझको दीवाना कहने लगे

इश्क की वादियां
क्या नजर आयेंगी
मेरे महबूब की
क्या खबर आएगी
मुश्किल है मेरा अब इंतजार करना
उन्हें देखने को हम तरसने लगे
लोग मुझको दीवाना कहने लगे

एक दौर वो था
जब मोहब्बत थी हमको
एक दौर ये है
जब नफरत है हमको
मगर हाल ऐसा है मेरे दिल का यारो
उन पर गजल हम कहने लग
लोग मुझको दीवाना कहने लगे

याद उनकी अब भी क्या गजब कर रही है
सारे अल्फाज मेरे महकने लगे
लोग मुझको दीवाना कहने लगे

उस जन्म में मिलेंगे किसी मोड़ पर
उसने कहा था जब बिछड़ने लगे
लोग मुझको दीवाना कहने लगे

     मेरी ये क़व्वाली आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्स के जिए जरूर बताइएगा | अगर अपने विचार को बयां करते वक्त मुझसे शब्दों में कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मैं तहे दिल से माफी चाहूंगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार नयी रचनाओं के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार |  

नवगीत , तू सीता मेरी मैं तेरा राम हूं

    नमस्कार ,  अच्छा उदाहरण एवम प्रतीकों का उपयोग हम कहां करते हैं ?  तो आप सोचेंगे कि यह कैसा बेतुका सवाल हुआ ,  तो मैं आपको बता दूं कि यह सवाल वाजिब है | क्योंकि आज मैं हिंदी साहित्य की जिस विधा के बारे में आपको बताने जा रहा हूं एवं अपनी रचना आपके साथ साझा कर रहा हूं उस विधा में विभिन्न प्रकार के प्रतीकों का उपयोग किया जाता है | नवगीत हिंदी साहित्य की एक ऐसी विधा है जिसमें अलग-अलग प्रतीकों का उपयोग गीतकार अपनी गीत में करता है | यह प्रतीक कुछ इस तरह के होते हैं जैसे , अपनी प्रेमिका को चांद जितना सुंदर बताना ,  प्रेमिका के काले घने बालों को काले घने मेंघो के जैसा बताना आदि |

नवगीत , तू सीता मेरी मैं तेरा राम हूं

    बीते दोपहर के करीब मैंने भी एक नवगीत की रचना की है | जिसे मैं आपके समक्ष आपके प्यार के लिए प्रस्तुत कर रहा हूं -

तू सीता मेरी मैं तेरा राम हूं

नदी के लहर सी चंचलता है तुझमें
पानी के जितनी सरलता है तुझमें
कभी मौन है तू आकाश जैसी
क्रोधित कभी तो बरसात जैसी
किसी अप्सरा से तू कम नहीं है
तू राधिका मेरी मैं तेरा श्याम हूं
तू सीता मेरी मैं तेरा राम हूं  }....(2)

आसमान का जो जमी से है
फूल का जो डाली से है
तेरा मेरा रिश्ता वही है
दरिया साहिल से अलग तो नहीं है
फूल की खुशबू कहीं छुपती नहीं है
तू पहचान मेरी मैं तेरा नाम हूं
तू सीता मेरी मैं तेरा राम हूं  } ....(2)

सोने का जो होता है तेरे तन का वही रंग है
सुनाई देता है नभ की गर्जना में
हमारे मिलन का वो मृदंग है
तेरे मन पर मेरा जो अधिकार है
मेरे मन पर तेरा जो अधिकार है
हां हां वही है वही प्यार है
तू पूर्ण है तो मैं अल्प विराम हूं
तू सीता मेरी मैं तेरा राम हूं  }....(4)

    मेरी ये नवगीत आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्स के जिए जरूर बताइएगा | अगर अपने विचार को बयां करते वक्त मुझसे शब्दों में कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मैं तहे दिल से माफी चाहूंगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार नयी रचनाओं के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार |  

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