शनिवार, 14 मार्च 2020

नज्म , हम मोहब्बत करके दिखाएंगे

      नमस्कार , कुछ दिनों पहले हमारे देश में खबरों और सीएए एनआरसी के विरोध प्रदर्षनों में पाकिस्तानी शायर फैज अहमद फैज कि एक नज्म का जिक्र बारहा हो रहा था और मुझे निजी रुप से यह लगजा है कि इस नज्म कि मुल भावनाओ का सार बदलकर यहा भारत में एक मजहबी उन्माद फैलाने कि कोशिश कि जा रही थी तो मैने इसी को देखते हुए एक नज्म कही थी | नज्म यू है कि

हम मोहब्बत करके दिखाएंगे

हम दिखाएंगे
हम मोहब्बत करके दिखाएंगे
एक दिन वो भी आएगा जब हम जीत जाएंगे
नफरत के सारे बादशाह मिट्टी में मिल जाएंगे

चाहे जितनी स्याह रात हो
तिरगी हो चाहे जितनी घनी
हम जुगनू सच के फरिश्ते हैं
उजाला करके उड़ जाएंगे

ना कोई खौफ ना दहशत होगी
ना कोई नारा ना परचम होगी
सिर्फ अमन की सत्ता होगी
जो वादा किया है अपनों से
वो वादा भी निभाएंगे

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      इस नज्म को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार | 

गजल , कलियों ने हवाओ से कह दिया

      नमस्कार , मैने एक नयी गजल कहने कि कोशिश कि है गजल का मतला और कुछ शेर यू देखें कि

कलियों ने हवाओ से कह दिया
कनिजों ने बादशाहों से कह दिया

जाते जाते उसने तो कुछ नही कहा
मैने सब कुछ निगाहों से कह दिया

वो कहते रह गए बस नफरत करो
मैने मोहब्बत खुदाओं से कह दिया

दुनियां में कोई उसके जैसी है ही नही
यही सच मैने अप्सराओं से कह दिया

ये सब ने देखा तनहा ने कुछ कहा ही नही
मगर मैने सब कुछ भावनाओं से कह दिया

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कविता , ईकरार नामा

     नमस्कार , ईकरार नामा ये कविता मैने करीबन तिन साल पहले लिखी थी जब यवा मन ने किसी के प्रति कुछ इसी तरह कि भावनाए जागृत हुई थी हालाकि यह कविता तब मै किसी को न सुना पाया और ना ही कहीं लिख पाया था क्यों कि तब मेरे पास इस तरह का कोई माध्यम नही था पर अब यह कविता आपके सामने है अच्छा है या बुरा यह मै आप पर छोड़ देता हुं

ईकरार नामा

मेरे प्रिय साथी
हमसफर , राही

          जाने कितने दिनों से
          मेरे दिल के कोने में
          दबी हुई भावनाएं
          मुझे तड़पाएं

          मैं चाहूं जब कहना
          ख्वाईसें बस तेरे संग रहना
          तब मन में अजीब सी
          कश्मकश कि लडी़यॉ
          मुझे उलझाएं , भटकाएं

          बेजुबां सा हो जाता हुं
          तुझे साथ पाकर
          लगता है जैसे जी लिया वर्षों
          चंद लम्हे बिताकर

          तेरा वो मूस्कुराना
          मुझे बहोत शुकुन देता है
          हमारा वो बात-बात पर लड़ना
          रुठना और मनाना
          चाहतें और बढा़ देता है

          तुम्हे ना देखुं एक पल भी
          तो बेचैन सा हो जाता हुं
          तु नही जानती मैं कैसे
          बिन तेरे रात बिताता हुं
          तेरी यादों के सपनों को
          अपने संग जगाता हुं

          मेरी जिन्दगी तुम हो
          मेरी आशिकी तुम हो
          तेरे बिन मैं तनहा हुं
          शांत होकर मेरी धड़कन सुनना
          ये तुमसे कुछ कहती हैं
          मैं तुमसे प्यार करता हुं
          खत मे यही लिखता हुं
          बस यहीं तक लिखता हुं

तुम्हारे प्यार का प्यासा
दीवाना , हमदर्द तुम्हारा

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कविता , चलो पतंगें उडा़ते हैं

    नमस्कार , मकर संक्राती के पावन पर्व पर हमारे देश में शहर शहर गांव-गांव बच्चों एवं बडो़ के द्वारा पतंगें उडा़यी जाती हैं इसी मौको पर अपने बचपन कि यादों को समेटकर मैने एक कविता लिखी हैं

चलो पतंगें उडा़ते हैं

चलो पतंगें उडा़ते हैं
कागज कि नाव रेत के टिले बनाते हैं

फिर कहीं क्रिकेट खेलते हैं
फिर कहीं कंचे खेलते हैं
फिर कहीं पेड़ों से परिंदे उड़ाते हैं
चलो पतंगें उडा़ते हैं

कहीं आम के पत्ते मुर्झाते हैं
कहीं बेरियों के कांटे पॉव में चुभ जाते हैं
अलहड़ बचपन में धूल में खेलते हुए
नई नई तरंगे उड़ाते हैं
चलो पतंगें उडा़ते हैं

एक बार और अमरुद के पेड़ों पर चढ़ जाते हैं
एक बार और गुल्ली डंडा खेलते हुए लड़ जाते हैं
इस बार फिर से छुट्टियों में उमंगे उड़ाते हैं
चलो पतंगें उडा़ते हैं

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