गुरुवार, 17 अक्टूबर 2019

ग़ज़ल, जिंदगी की जरा सी निगरानी है

      नमस्कार , यहा मै अपनी नयी गजल आपकी जानीब में रख रहा हुं मेरी दिली तमन्ना है कि मेरी ये नयी गजल आपको बेहद पसंद आएगी

जिंदगी की जरा सी निशानी है
उस गड्ढे में थोड़ा सा पानी है

ये कहके बढ़ा दी मेरी धड़कने उसने
इधर आओ तुम्हें एक चीज बतानी है

यही दो गज जमीन है सल्तनत मेरी
यही कब्र मेरी राजधानी है

निजाम ने कहा है तारीफ करो या चुप रहो
सच बोलना हुकुम की नाफरमानी है

जंग लगी है सिर्फ मियान में धार में नही
है वही तलवार थोड़ी पुरानी है

दर्द ने टटोल टटोल कर तप्सील किया
मेरा आशु , आशु है या पानी है

अजीब सवाल पूछा है मूनशफ ने चोर से
चोर में चोरी का हुनर खानदानी है

दुश्मनी नई-नई है तनहा मेरी उनसे
वरना दोस्ती तो बहुत पुरानी है

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ग़ज़ल, हरेक धडकन परेशान करती है

    नमस्कार , यहा मै अपनी नयी गजल आपकी जानीब में रख रहा हुं मेरी दिली तमन्ना है कि मेरी ये नयी गजल आपको बेहद पसंद आएगी

हरेक धडकन हैरान करती है
सांस बहोत परेशान करती है

सहर होती है सजदा करते हुए
हवा भी अजान करती है

गाली देती है दुनिया इसको मगर
मौत तो जिंदगी आसान करती है

एक तेरा कूचा है जो मुफ्त में है
गली हम पर चालान करती है

वो लिखती है शेर में बेवफा मुझको
मेरी मोहब्बत का सम्मान करती है

तनहा जो कुछ भी नही कह पाता है
गजल वही कहना आसान करती है

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रविवार, 13 अक्टूबर 2019

ग़ज़ल, आज फिर बैग में छाता रह गया

      नमस्कार , यहा मै अपनी नयी गजल आपकी जानीब में रख रहा हुं मेरी दिली तमन्ना है कि मेरी ये नयी गजल आपको बेहद पसंद आएगी

वो मुझ पर झरझराता रह गया
मै भी कुछ बडबडाता रह गाया

पिहर से बीदा होकर चली गई वो
मै छत से हाथ हिलाता रह गया

एक बार नियत से जो गिरा वो गिरा
फिर होश में न रहा , लडखडाता रह गया

बारिस ने तरबतर कर दिया तो याद आया
आज फिर बैग मे छाता रह गया

मुर्गे का सर खुटूक कर फेंका गया
और वो मरने तक फडफडाता रह गया

मेरी मोहब्बत को किसी और पर यकिं है
मै दुनियाभर को मोहब्बत सिखाता रह गया

वो गई तो थी सारे ताल्लुकात तोडकर
मै हि था जो पुराना रिश्ता निभाता रह गया

यहां सबने खुदा बनने कि ऐसी जीद पकडी
इंसान बनाकर अफशोस मे विधाता रह गया

सामयिन महफिल से गए बच गयीं कुर्सिया
इधर गजलगो गजल गाता रह गया

सितारो ने खुब मजे किए चॉद के साथ
आसमान अपना हक जताता रह गया

जिसे जहा सहारा मिला वही ठहर गया
वो शख्स हर किसी को आजमाता रह गया

दिलों के संबंध तो तिजारतों की भेंट चढ गए
याद करने को पुराना रिश्ता नाता रह गया

आंखों ने किसी और को बसा लिया तनहा
चश्मा किसी और का मंजर दिखाता रह गया

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ग़ज़ल, दिललगी बारी बारी करो

     नमस्कार , यहा मै अपनी नयी गजल आपकी जानीब में रख रहा हुं मेरी दिली तमन्ना है कि मेरी ये नयी गजल आपको बेहद पसंद आएगी

दिललगी सब से बारी बारी करो
पहले जमी फिर आस्मा से यारी करो

ये जमीन जहरिली हो चूकी है
यहां से कहीं और बसने कि तैयारी करो

हवाओ से बाते करना पुराना हो चुका है
इस दौर में तुफानों पर सवारी करो

आस्मा जहर का धुआ बन गया है
सांसे चाहिए तो सजरकारी करो

घरवालों की यही नसीहत रहती है
नौकरी करो तो सरकारी करी

कोई गुलबदन महताब महजबी दिल चुरा नले
अपने सामान की पहरेदारी करों

मसला ये नही की कौन मोहतरम है
फैसले में सब कि रायशुमारी करो

अपने जिस्म के वास्ते सच बोलो
अपनी रुह से वफादारी करो

वस्ल का मंजर हसीन होता है तनहा
मोहब्बत में पहले हीजरत की तैयारी करो

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