रविवार, 12 अगस्त 2018

ग़ज़ल, जैसे कोई चिंगारी आग लगा देती है

नमस्कार , इस गजल को मैने 30 अप्रैल 2017 को लिखा था | मेरी यह गजल मेरे इंस्टाग्राम के अकाउंट पर भी साझा कि गई है | वहा मेरी इस रचना को आपका प्यार मिला है | आशा है कि मेरी यह रचना आपको पसंद आयेगी |

उनकी याद मुझे ऐसे जला देती है
जैसे कोई चिंगारी आग लगा देती है

मेरी मोहब्बत को वो कुछ इस तरह समझते हैं
उनकी बेरुखी भी मुझे अब तो दुआ देती है

तन्हाई में वो होकर बेसबब पड़ती है बार-बार
जमाने को देखते ही मेरे खत को छुपा देती है

खुला आसमान परिंदों को बहुत भाता है
बहुत अधिक उड़ान मगर पर को थका देती है

भला है कम में मुतमइन हो जाना
शोहरत की चाह अक्सर गद्दार बना देती है

किसी और हसीन का मैं जिक्र करूं भी तो कैसे
मुझे मेरी धड़कन ही मेरा दुश्मन बना देती है

तुम्हें ये बात सुनकर कभी यकीन नहीं होगा
वो मेरा नाम हाथ पर लिखकर के मिटा देती है

सब कहते हैं वह आजकल बहकी बहकी बातें करता है
हमने सुना है दीवानगी पागल भी बना देती है

     मेरी गजल के रूप में एक और छोटी सी यह कोशिस आपको कैसी लगी है मुझे अपने कमेंट के जरिए जरुर बताइएगा | अगर अपनी रचना को प्रदर्शित करने में मुझसे शब्दों में कोई त्रुटि हो गई हो तो तहे दिल से माफी चाहूंगा |  एक नई रचना के साथ मैं जल्द ही आपसे रूबरू होऊंगा | तब तक के लिए अपना ख्याल रखें  अपने चाहने वालों का ख्याल रखें | मेरी इस रचना को पढ़ने के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया | नमस्कार |

शनिवार, 11 अगस्त 2018

ग़ज़ल, टूटा हुआ कांच हूं

नमस्कार , टुटा हुआ कांच हूं छुओगे तो चुभ जाऊंगा गजल को मैने 1 फरवरी 2017 को लिखा था | गजल का मतला और दो तीन शेर देखें के -

ग़ज़ल, टूटा हुआ कांच हूं

टुटा हुआ कांच हूं छुओगे तो चुभ जाऊंगा
मोम का पत्थर हूं आंसुओं से भी पिघल जाऊंगा

अब तक घर नहीं है क्या बताऊं पता तुमको
बहता हुआ पानी हूं नहीं मालूम कहां जाऊंगा

मैं तो मजबूर हूं सच बताएगा आइना तुमको
मैं मर जाऊंगा उस दिन जब तुम्हें भुलाऊंगा

नफरत का दायरा इतना छोटा है कि क्या बताऊं तुमको
मैं जो खोना भी चाहूं तो कहीं ना कहीं मिल जाऊंगा

ये वादा है न टूटेगा मरते दम तक
मैं जो जाऊंगा तो लौट कर ना आऊंगा

तुम मुझे माफ करो ये हम नहीं कहते
इतना मालूम है रुलाकर तुम्हें मैं ना मुस्कुराऊगा

     मेरी गजल के रूप में एक और छोटी सी यह कोशिस आपको कैसी लगी है मुझे अपने कमेंट के जरिए जरुर बताइएगा | अगर अपनी रचना को प्रदर्शित करने में मुझसे शब्दों में कोई त्रुटि हो गई हो तो तहे दिल से माफी चाहूंगा |  एक नई रचना के साथ मैं जल्द ही आपसे रूबरू होऊंगा | तब तक के लिए अपना ख्याल रखें  अपने चाहने वालों का ख्याल रखें | मेरी इस रचना को पढ़ने के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया | नमस्कार |

चार रुबाईया

नमस्कार , जैसा की हम जानते हैं कि मुक्तक मतलब रुबाई , रुबाई मतलब मुक्तक होता है तो 29 जनवरी 2017 को मैने तकरीबन चार रुबाईया लिखी भी जिन्हें आज आप को सुना रहा हूं |

चार रुबाईया

(1)

तुमसे नजरें जो मिला लिया हमने
खुद को दुश्मन बना लिया हमने
तेरे प्यार का और कोई सिला न मिला
फिर भी तुझको दिल में बसा लिया हमने

(2)

आ तुझसे चाहता का बयान दे दूं
तेरे लिए ही दो जहां छोड़ दूं
ये बता मेरे बिन क्या करेगी तू
तू जो कहे तो अभी जान दे दूं 

(3)

तेरे वादों पर हक तेरा है
तेरी मुलाकातों पर हक तेरा है
तू जो चाहे ये रिश्ता तोड़कर चली जाना मगर
तेरी यादों पर हक मेरा है

(4)

तेरी चाहतों को दिल में दबा रखा था
बोलना चाहा फिर भी बेजुबां रखा था
एक रोज अचानक लोगों को पता चल ही गया
खुशबू आई तो देखा फूलों को किताबों में छुपा रखा था

     मेरी रुबाईयों के रूप में एक और छोटी सी यह कोशिस आपको कैसी लगी है मुझे अपने कमेंट के जरिए जरुर बताइएगा | अगर अपनी रचना को प्रदर्शित करने में मुझसे शब्दों में कोई त्रुटि हो गई हो तो तहे दिल से माफी चाहूंगा |  एक नई रचना के साथ मैं जल्द ही आपसे रूबरू होऊंगा | तब तक के लिए अपना ख्याल रखें  अपने चाहने वालों का ख्याल रखें | मेरी इस रचना को पढ़ने के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया | नमस्कार |

ग़ज़ल, कभी कभी ये तरिका भी आजमाया करो

नमस्कार , ये गजल मै ने 21 जनवरी 2017 को लिखा था | पुरी जिम्मेदार के साथ मैं कहना चाहूंगा के अभी तक मै ने YouTube videso के माध्यम से करिबदन सैकड़ों शायरो को सुना है इसलिए मेरी गजलो की जमीन किसी भी शायर की हो सकती हैं मगर गजलें पुरी तरह से मेरी है या मेरे द्वारा लिखित एवं रचित हैं | गजल देखे के

ग़ज़ल, कभी कभी ये तरिका भी आजमाया करो

कभी-कभी ये तरीका भी आजमाया करो
उनकी तरफ देख कर मुस्कुराया करो

सुना है कि दीवारों के भी कान होते हैं
इश्कबाजों अब कमरों में भी खुशफूसाया  करो

तारे चुपके से सही तुम्हारा चेहरा देख ही लेते हैं हर रोज
मेरी मानो तो अपने पल्लू से अपना नूर छुपाया करो

हर महीने ना सही तो ना सही
साल में एक दो बार तो हमारे शहर में आया करो

तुन जो यू कुछ कहती लोग बातें बनाने लगते हैं
तुम मुझे तनहा कहकर बुलाया करो

     मेरी गजल के रूप में एक और छोटी सी यह कोशिस आपको कैसी लगी है मुझे अपने कमेंट के जरिए जरुर बताइएगा | अगर अपनी रचना को प्रदर्शित करने में मुझसे शब्दों में कोई त्रुटि हो गई हो तो तहे दिल से माफी चाहूंगा |  एक नई रचना के साथ मैं जल्द ही आपसे रूबरू होऊंगा | तब तक के लिए अपना ख्याल रखें  अपने चाहने वालों का ख्याल रखें | मेरी इस रचना को पढ़ने के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया | नमस्कार |

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