गुरुवार, 30 जनवरी 2025

कविता, कुंभ निरंतर चलता रहता है

 नमस्कार, मैं अपनी इस नई कविता के विषय मे कोई भुमिका नही बनाना चाहता क्योंकि मैं समझता हूं कि यह कविता किसी भी भुमिका से परे है इसलिए मै सिधे कविता आपके सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हूं। 

Mahakumbh 2025


कुंभ निरंतर चलता रहता है 


देह रुपी पुण्य धरा पर 

मन, चित्त और आत्मा की त्रिवेणी में 

श्रद्धालु रुपी कई विचार 

निरंतर आते जाते रहते हैं 

भाव सदृश पावन डुबकी 

निरंतर ही लगाते रहते हैं 

जीवन रुपी यह अमर दीया 

ऐसे ही चिरंतन जलता रहता है 

कुंभ निरंतर चलता रहता है


भौतिक जगत का यह महाकुंभ जो आया है 

कई जन्मों के पुण्य कर्मों का 

प्रसाद हमने पाया है 

आस्था है राह मोक्ष की 

गंगाजल तो एक सहारा है 

ब्रह्म सत्य है सत्य ब्रह्म है 

बस तर्क बदलता रहता है 

कुंभ निरंतर चलता रहता है


कविता के विषय मे अपने विचार अवश्य प्रकट करिएगा, नमस्कार। 

शनिवार, 25 जनवरी 2025

कविता, गणतंत्र के साढ़े सात दशक

 नमस्कार, गणतंत्र दिवस के पावन अवसर पर हमारे महान गणतांत्रिक देश भारत को समर्पित मैं ने एक नयी कविता लिखने का प्रयास किया है जिसे मैं आपके साथ साझा कर रहा हूं मुझे आशा है कविता आपको पसंद आएगी। 


गणतंत्र के साढ़े सात दशक 


पहला दशक अभिमान का था 

मां भारती के गौरव गान का था 


दुसरा दशक आत्मसम्मान का था 

भारत माता की स्वाभिमान का था 


तिसरा दशक भारत के पहचान का था 

और गणतंत्र पर संकट समाधान का था 


चौथा दशक कई प्रावधान विधान का था 

गणतंत्र जनित समस्या और निदान का था 


पांचवां दशक नए बदलाव का था 

विश्व से फिर नए लगाव का था 


छठवां दशक धन के बहाव एवं ठहराव का था 

भारत कि चेतना पर फिर लगे घाव का था 


सातवां दशक जन जागृति एवं विश्वास का था 

सामान्य मानव जीवन में आ रहे नए प्रकाश का था 


वर्तमान में चल रहा दशक प्राचीन गौरव के भान का है 

और भविष्य के स्वर्णिम भारत के आहवान का है

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